मातृ नवमी श्राद्
भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति में सभी को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है ।कुँआर मास पितृपक्ष में श्राद्ध केवल पुरुष पितरों का ही नहीं वरन घर की उन महिलाओं का भी जो अब इस संसार में नहीं है उनको मातृनवमी या नवें डुकरियां सम्बोधित करते हुये सौभाग्यवतीदादी ,परदादी ,माँ ,चाची ,ताई,बुआ,मौसीबहिन आदि जो भी मातृपद से सम्बोधित हैं सभी का श्राद्ध श्रद्धा पूर्वक किया जाता है । इस श्राद्ध और तर्पण से तृप्त होकर वह श्राद्ध करने वाले को सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती है । हमारी उदात्त भारतीय संस्कृति सभी के प्रति उदात्तता का भाव रख कर अपनी उदारता का परिचय देती हे । श्राद्ध पक्ष में हर दिन किसी न किसी के लिये नियत रहता है । जिसे पुत्र पौत्र भांजा ,दौहित्र और दामाद कोई भी कर सकता है।जिसमें सात पीढ़ी तीन कुल के लिये यह तर्पण अर्पण और समर्पण होता है ।सोलह भाद्र मास की पूर्णिमा से लेकर पितृ विसर्जन अमावस्या तक । तो आईये हम भी अपने पितृऋण और मातृऋण को उन्हें अपनी तर्पण ,अर्पण और पूरण श्रद्धा भाव के साथ समर्पित होकर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करें ।तिथि, वार और दिन न मालूम होनै पर ही यह दिन सभी के लिये हमारे ऋषि-मुनियों ने नियत किया है ।जिसमें भूले बिसरे सभी को श्रद्धा भाव से श्राद्ध करते हुये तृप्त किया जाता है।सर्व मातृदेवेभ्यो नम:।
उषा सक्सेना-मुंबई