आत्म विश्लेषण
अपने स्वयं के विचारों पर चिंतन करते हुये अपने दूसरों के आथ किये जारहे वयहारों का मूल्यांकन करना ही आत्मविश्वास ही आत्म विश्लेषण की आंतरिक प्रक्रिया है ।आत्म चिंतन करते हुये अपने आपका अवलोकन है ।इस प्रक्रिया के माध्यम से हम अपने आपकी दूसरों से तुलना करते हुये अपने गुणों को पहचान कर अपने अवगुणों को दूरसकते हैं ।इससंसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो दोष रहित हो ।कुछ न कुछ कमी सभीमें होती है । इसकेसाथही कुछ न कुछ अच्छा गुण उसमें होता है । हर गुण तो सभी में नहीं होता ,यदि ऐसा होता तो वह पूर्ण होता।अपने दोषों का परिहार करते हुये स्वयं को बेहतर बनाने की प्रक्रिया ही अंतर्वस्तु है जिसके माध्यम से हम दूसरों को सुख पहुंचाते हुये अपने गुणों की वृद्धि करते हैं । गुण सदा सुख और आनंद देते हैं जबकि दोष छिद्रान्वेषी की तरह केवल दूसरों की कमी ढूंढ़ते हुये सदा दुख ही देते हैं ।
आत्म निरीक्षण की प्रक्रिया पहले तो हमारे अंदर आत्म विश्वास जगाती है ।यह शक्ति ही हमें कठिनाईयों से लड़ने का साहस प्रदान करती है। दूसरी ओर अध्यात्म की ओर ले जाती है जहां हम अपने आपको पहचानने का प्रयास करते हैं । विचारों के साये में घिरे चिंतन से हम कौन हैं ,!क्यों आये हैं !इस जीवन का उद्देश्य क्या है? इन्हीं प्रश्नों के हल खोजता एक दिन वह स्वयं उसी में समाहित हो जाता । जीवन का लक्ष्य जब तक प्राप्त नहीं होता तब तक यह यात्रा अनवरत चलती रहती है ।आत्म विश्लेषण ही ,आत्म चिंतन करता हुआ आत्म ज्ञान को प्राप्त करता है ।
- उषा सक्सेना-मुंबई