काव्य :
जिंदगी
सफर में धूप तो होगी
जो चल सको तो चलो, सभी हैं भीड़ में तुम भी
निकल सको तो चलो ।
किसी के वास्ते राहें
कहाँ बदलती है ?
तुम अपने आप को
खुद ही बदल सको तो चलो । यहाँ किसी को कोई
रास्ता नहीं देता ,
मुझे गिरा के अगर तुम
संभल सको तो चलो ।
कही नहीं कोई सूरज
धुआँ-धुआँ है फ़िजा , खुद अपने आप से बाहर
निकल सको तो चलो ।
यही है ज़िन्दगी
कुछ ख्वाब चंद उम्मीदें , इन्हीं खिलौनों से तुम भी
बहल सको तो चलो।
- स्नेहा सिंह, प्रयागराज
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