काव्य :
भगवत गीता - सांतवाअध्याय भगवद्ज्ञान
कृष्ण व्यवहारिक ,दिव्यज्ञान
की व्याख्या करते हुए कहते हैं
मैं सर्वव्यापी हूँ। हे अर्जुन-
पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि,
मन,बुद्धि,अंहकार, आकाश-
प्रकृतियाँ मेरी,मै जल का स्वाद,
सूर्य और चंद्र का प्रकाश,
ग्रहो की व्यवस्था मैं हूँ,
ओंकार, आकाश मे ध्वनि,
मनुष्य मे सामर्थ्य ,पृथ्वी की
सुगंध, अग्नि की ऊष्मा,जीवो
का जीवन और साधको का तप मै हूँ।
मुझमे श्रद्धा के लिए ज्ञान ज़रूरी ,
गीता का अध्ययन -श्रवण जरूरी ,
शास्त्र ईश्वर के ज्ञान के स्त्रोत -प्रमाण ,
प्रत्यक्ष प्रमाण और अनुमान प्रमाण से
ईश्वर केअस्तित्व का ज्ञान नहीं होता ,
जैसे अँधेरे में छाया नहीं दिखती,
दुर्योधन शकुनी को भी नहीं दिखे
भगवान,जीव कभी ईश्वर नहीं होते,
हे कृष्ण ,आप सर्वव्यापी हैं तो क्यूँ
लोग आपके अस्तित्व को नकारते ?
हे अर्जुन,जीव पर सतोगुण,
रजोगुण, तमोगुण आच्छादित
जैसे जादूगर विषय वस्तु को
जादू से भ्रमित कर देता ।
मेरी शक्तियो से पार जाना कठिन
पर शरणगत को मुक्त करता माया
से, व्यक्ति इच्छानुसार ही मेरी
शरण लेता, चार तरह के व्यक्ति
शरणागत नहीं होते मेरे,
मूर्ख ,कुकर्मी ,भौतिक विद्वान,
(मायाशक्ति से जिनके आध्यात्मिक
ज्ञान का अपहरण हो चुका होता है)
असुर प्रकृति के,जो ईश्वर को नकारते
चार प्रकार के लोग शरणागत ,
आर्त,जिज्ञासु,अर्थाथी ,ज्ञानी,
मुझे प्रिय परमज्ञानी ,मेरे स्वरुप को
मानता, मुझसे सम्बंध जोड़ने का
मार्ग ढूंढता, भौतिक इच्छा से भरे
लोग, देवताओं की शरण लेते,
वो अल्पबुद्धि , उनकी पूजा से
प्राप्त फल भी क्षणिक नश्वर होते,
मेरे प्रिय भक्त परमधाम को जाते।
मेरी शक्ति से भक्त अपनी भक्ति,
देवता अपने वरदान में स्थिर होते,
अल्पबुद्धि के कारण मनुष्य मेरे
अविनाशी, सर्वोच्च रूप को नहीं
जानते, मैं अविनाशी, अजन्मा हूँ,
जो मेरे स्वरुप को नहीं जानते,
कृष्ण- राम स्वरुप को नहीं मानते
चाहे वो शास्त्र,ज्ञान के ज्ञाता हो
मेरी शरण मे नही आते ।
सिर्फ भक्तिमय व्यक्ति ही मेरी शरण
पाता, हे अर्जुन,मेरी शरण में आओ।
मै एक हूँ, मै परमेश्वर हूँ।
रानी पांडेय
रायगढ़,छत्तीसगढ।
Tags:
काव्य