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भारत के गौरव-पुंज रतन टाटा : कुछ भी शेष नहीं.रहता बस यादें रह जाती हैं -पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर


 

भारत के गौरव-पुंज रतन टाटा : कुछ भी शेष नहीं.रहता बस यादें रह जाती हैं 

अब शेष रही यादों में रतन टाटा की उज्वल मानवीय छवि देश के हृदय में .अंकित रह गई है।

जमशेदपुर. टाटानगर ने सही अर्थों में अपने गौरव का प्रतीक. #भारत #रत्न खो दिया है।कभी कभी किसी के चले.जाने से रिक्त जगह को भर पाना आसान नहीं.होता.ऐसा ही था अब स्मृतिशेष रतन टाटा का व्यक्तित्व. जिसकी शून्यता  कभी पूर्ण नहीं हो सकती।

: टाटा उद्योग जगत के महानायक रतन टाटा का निधन देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उन्होंने न सिर्फ टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया, बल्कि भारतीय उद्योग को वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठा दिलाई. उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने कई ऐतिहासिक अधिग्रहण किए और समाज कल्याण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. रतन टाटा की विरासत हमेशा प्रेरणादायक रहेगी, और उनका जाना देश को गहरे शोक में डाल गया है.

रतन टाटा (28 दिसंबर 1937–9 अक्टूबर 2024) भारतीय उद्योगपति थे जो टाटा समूह और टाटा संस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। वे भारत की सबसे बड़ी व्यापारिक इकाई, टाटा समूह, के 1991 से 2012 तक अध्यक्ष थे। इसके अतिरिक्त, अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक वे समूह के कार्यकारी अध्यक्ष भी रहे। उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने वैश्विक स्तर पर विस्तार किया और कई महत्वपूर्ण अधिग्रहण किए। 2000 में तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण प्राप्त करने के बाद, 2008 में उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण मिला। अनेक विकास के कार्य और देश को प्रगति पथ पर ले जाने का.महत्वपूर्ण योगदान भी उन्हीं के नाम है।जब जेआरडी टाटा ने 1991 में टाटा संस के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, तो उन्होंने रतन टाटा को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उन्हें कई कंपनियों के प्रमुखों से कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, जिन्होंने अपनी-अपनी कंपनियों में दशकों तक काम किया था। टाटा ने सेवानिवृत्ति की आयु निर्धारित करके उनकी जगह लेना शुरू कर दिया। उन्होंने प्रत्येक कंपनी के लिए समूह कार्यालय में रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया। उनके नेतृत्व में टाटा संस की अतिव्यापी कंपनियों को एक समन्वित इकाई के रूप में सुव्यवस्थित किया गया।

उन्होने सिर्फ धन कमाकर प्रसिद्ध नहीं बनना चाहा .बल्कि उस धन का सदुपयोग सामाजिक. औद्योगिक और विकास की नयी नयी चुनौतियों को पार कर एक सर्वोच्च प्रतिमान स्थापित करने में किया।जहां टाटा का नाम उत्कृष्टता का मानक बन गया।और इस चुनौती में सहायक अपने हर कर्मचारी का आभार माना .जब भी जमशेदपुर आते वो बडी हस्तियों की बजाय कर्मचारियों से मिलना ज्यादा पसंद करते थे। यूनियन को भी प्रमुखता देते थे।उनके नाम कभी कोई विवाद नहीं रहा।

टाटा स्टील. टाटा मोटर्स ही नहीं आज हर जमशेदपुर वासी की आंखें नम हैं ..वे.हमेशा हमारे दिल में रहेंगे.अलविदा सर!!.शत-शत नमन विनम्र श्रद्धांजलि।


 - पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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