काव्य :
रतन टाटा तुम्हें नमन
कठिन व असाधारण है होना टाटा रतन
मानवीयता से जुड़ने के, करना सर्व जतन
गति देना उद्योगों व देश विकास को
करने पड़ते हैं ,अविश्वसनीय सब प्रयत्न
रफ्तार और दिशा देना उद्योगों को
कर्म में करना ,लाखों रोजगार के यत्न
धन लाभ और मोह का परित्याग करना
दानवीर होना,और मनुष्य हित ही चिन्तन
जमीन से जुड़ा और होना सरल भी
अखिल विश्व में स्थापित करना, कर्म से निज वतन
आज लगता जैसे थम गया हो समय
*ब्रज* मैं,अश्रुपूर्ण करता *रतन टाटा तुम्हें नमन*
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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