काव्य : गजल
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भीड में सब चल दिए रावण जलाने के लिए पुण्य जीता पाप हारा यह बताने के लिए
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माॅ पिता आदेश से चौदह वर्ष वन में रहे
वो गये थे पाप की लंका ढहाने के लिए
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था घमंडी और ज्ञानी पर दुराचारी नहीं
वो लडा था राम को नीचा दिखाने के लिए
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राम के पथ पर चलें यह कामना मन में नहीं
रीतियाॅ वर्षों पुरानी बस निभाने के लिए
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छल कपट अन्याय का अब इस धरा से अंत हो
तब मने घर घर दशहरा जन जगाने के लिए
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सोच रावण का समर्थन पर दहन पुतला हुआ
कौन जीता है बताओ राम बनने के लिए
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ज्ञान का स्तर बढ़ा पर आचरण गिरने लगे
जी रहा है हर कोई बस धन कमाने के लिए
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राम के पथ पर चलें तब राम का राज हो
चल पडा राही यही सौगात देने के लिए.
- राजेन्द्र शर्मा राही , भोपाल
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