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काव्य : भरोसा - डॉ. सत्येंद्र सिंह, पुणे


 काव्य : 

भरोसा

भरोसा अब अपने आप पर नहीं रहा

तुम्हारे भरोसे की बात क्या करें साथी,

मैं जो चाहता हूँ,  तहे दिल से चाहत हूँ

तुम किसे कैसे चाहते मैं क्या कहूँ साथी।


शब्द व वाणी के स्तर बदल रहे हैं आज

अर्थ भी अलग अलग हो रहे हैं साथी,

कौन क्या समझा, किसे क्या समझाया

अब सच सच कौन बता पाएंगे साथी।


बहुत कोशिश की अंधेरों से निकलने की

जब दिया जलाया किसीने बुझाया साथी,

बुझाने वाले का हाथ नहीं देख पाया कभी

हमेशा स्वयं को अंधेरों से घिरा पाया साथी।


शोर सुनाई देता है कि अंधेरों से निकलो

पर रोशनी कहीं नजर नहीं आती है साथी,

शोर भी अंधेरे से आता दिखता है सबको

दीप  वाले की अब आस दिखती नहीं साथी।

                     - डॉ. सत्येंद्र सिंह, पुणे

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

2 Comments

  1. शब्द व वाणी के स्तर बदल रहे हैं.. बहुत सच्चाई से मन की पीड़ा को अभिव्यक्त किया है. हार्दिक बधाई!💐

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  2. श्री. देवेंद्र सोनी जी के प्रति बहुत बहुत आभार!💐

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