ad

कहानी चरित्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती है- राजेन्द्र दानी


 

कहानी चरित्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करती है- राजेन्द्र दानी 

भोपाल । अंतर्राष्ट्रीय विश्वमैत्री मंच का एक अभिनव आयोजन, कहानी संवाद ‘दो कहानी- दो समीक्षक’ 18 नवम्बर 2024, सोमवार की शाम गूगल मीट पर संपन्न हुआ। इस अवसर पर जब वरिष्ठ कहानी कार संतोष श्रीवास्तव एवं सुषमा मुनींद्र ने अपनी कहानियाँ, क्रमशः  ‘अमीश के पापा’ एवं ‘न बोले तुम न मैं ने कुछ कहा’, जब पढ़कर सुनाईं तो माहौल गंभीर-सा हो गया। जहाँ एक ओर संतोष श्रीवास्तव की कहानी एक दिव्यांग के चरित्र और उससे प्रभावित परिवार की मानसिकता पर आधारित, अत्यंत मार्मिक कहानी थी तो वहीँ दूसरी ऒर सुषमा मुनींद्र की कहानी पति-पत्नी के रिश्तों की विवेचना कर रही थी। जो एक दूसरे से सुलगते सवाल पूछते हुए भी सकारात्मकता का प्रदर्शन कर रहे थे। प्रस्तुत हैं  कहानी के अंश।

“मेरी आँखों में आँसू आ गए ।जिन्हें मैंने आँखों में ही रुमाल से दबाकर बहने से रोका। लगातार हंसने वाला लड़का जोर-जोर से चिल्लाने लगा- 

‘रोती क्यों हो? मत रो ,हंसो।’

ऐसा कहते हुए वह फिर हंसने लगा। मानो वह ईश्वर के अन्याय पर हंस रहा हो। ईश्वर की कंजूसी पर हंस रहा हो कि उन्हें संपूर्ण मनुष्य नहीं बनाया।”

(संतोष श्रीवास्तव की कहानी, ‘अमीश के पापा’, का अंश)

----

‘‘सिंगल्स, डबल्स में कुछ बार हारी हूँ पर मिक्स्ड डबल्स में हमेशा जीती हूँ।’’

मिक्स्ड डबल्स ........... कौन था इसका साथी ?  दोनों के बीच अनुराग जैसे तत्व ...

‘‘मायके जाती हो तब खेलती हो ?’’

‘‘नहीं। खेल किसी के लिये नहीं रुकता। वहाँ दूसरे खिलाड़ी आ जाते हैं।’’

‘‘मिक्स्ड डबल्स में ...

मनीषी ने तत्परता दिखाई, ‘‘मेरी जगह संगीता आ गई है।अच्छा तालमेल बना लिया है।’’

‘‘संगीता को अपनी जगह देख कर बुरा लगता होगा।’’

‘‘खेल और जिंदगी के नियम अक्सर एक जैसे होते हैं। जगहें भर जाती हैं।”  

(सुषमा मुनींद्र की कहानी, ‘न बोले तुम न मैं ने कुछ कहा’ का अंश) 

-

इस अवसर पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में राजेन्द्र दानी ने दोनों कहानियों पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि दोनों कहानियाँ में पात्रों का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण देखने को मिलता है। आपने कहा कि ये कहानियाँ पाठक को जोड़ती हैं, उसे उद्धेलित करती हैं। 

मुख्य अतिथि डॉ आशा पाण्डे ने कहा कि पढ़ी गई कहानियाँ काल बोध के साथ ही साथ समाज के दबाव को भी रेखांकित करती हैं। 

श्रोताओं ने भी अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहानियों के चरित्र चित्रण पर अपनी बात कही। दोनों कहानियों पर एक स्वास्थ्य विमर्श भी हुआ। 

मुजफ्फर सिद्दीकी ने सञ्चालन करते हुए कहा कि वास्तव में ज़िन्दगी वह नहीं जो क्लबों में नाचती, गाती, शोर मचाती दिखाई देती है असल ज़िन्दगी वही है जिसमें जीने के लिए संघर्ष है। 

अर्चना पंड्या ने अतिथियों के साथ ही श्रोताओं का भी आत्मीय स्वागत किया। जया केतकी शर्मा ने अपना बहुमूल्य समय देने के लिए सभी का आभार व्यक्त किया। 

कहानी संवाद की इस गोष्ठी में देश-विदेश से वरिष्ठ कहानीकार और पत्रकार सम्मिलित हुए।  

- मुज़फ्फर सिद्दीकी

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

Post a Comment

Previous Post Next Post