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काव्य : ग़ज़ल - प्रदीप मणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल


 

काव्य : ग़ज़ल

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ग़रीबों के नसीबों में कभी सब कुछ नहीं होता|

कभी रोटी नहीं होती कभी भुर्ता नहीं होता|


कभी जो हार जाता ज़िन्दगी से वास्ते उसके,

ये ज़ाहिर है मुसीबत में कोई रस्ता नहीं होता|


उसी को ज़िन्दगी देती मगर ये मात भी लेकिन, 

वो जिस इंसान में जीने का ही ज़ज्बा नहीं होता|


यतीमों के तो हक़ में पैरहन पूरे कहाँ होते, 

कभी पतलून भर होता कभी जामा नहीं होता|


क़बीले का जो मुखिया वो तो हिस्से में बटा होता,

वो फरमाइश में जाता टूट वो ज़िन्दा नहीं होता|


अभी के दौर में हर रोज़ बलबे देख इस दिल को,

कभी गम भी तो होता है मगर ज़्यादा नहीं होता|


बदलते इन रिवाज़ों में कई बदलाव हैं आए, 

बड़ों के सामने इज़्ज़त का अब पर्दा नहीं होता|


ये महगाई के आलम में कमाने की जुगत में ही,

वो पिस जाता है आखिर ख़ुश कभी बंदा नहीं होता|


कभी हालात भी होते निबाले हैं नमक ग़ायब,

कभी दोनों मयस्सर होते ये अक्सर नहीं होता|

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प्रदीप मणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल मध्यप्रदेश,16/11/2024

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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