काव्य :
पनाहों से बोलेंगे
न ही बहारों से बोलेंगे।
न ही खिज़ाओं से बोलेंगे।
आएंगे जाएंगे मौसम ।
यही नज़ारों से बोलेंगे।
कानों क्यों बाजी शहनाई।
कभी कहारों से बोलेंगे।
एक लहर खुशबू की घर तक।
इन्हीं बहारों से बोलेंगे।
एक छोटी सी मुंदरी गढ़ दे।
कई सुनारों से बोलेंगे।
तरस कभी तो हम पर खाएं।
घिरी बलाओं से बोलेंगे।
दूर खड़ी क्यों पास न आई।
नई अदाओं से बोलेंगे।
हमको मुश्किल छू न पाए।
सभी दुआओं से बोलेंगे।
मुद्दत एक सजा की तय हो।
सभी खताओं से बोलेंगे।
बरस चुकीं अब थम भी जाएं।
घनी घटाओं से बोलेंगे।
कांटे कब तक खत्म ना होंगे।
बची पनाहों से बोलेंगे।
- आर एस माथुर , इंदौर
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