काव्य :
बिखरे नहीं
कितने टूटे कितने दरके
सदियाँ गवाह है
कब मिले हाथ कब
छूटे हाथ
सदियाँ गवाह है।
धरती आकाश चाँद
तारे साक्षी सारे
हमारी अंतरंगता के,
विरह की दीवारें
भी न रोक पाईं हमारे
ईरादे,
मिले,जुदा हुए फिर
मिले
यही रही दास्तां हमारी
सदियाँ गवाह हैं।
रब की लिखी इबारत
कब कोई मिटा सका,
खेल नियति का
यही तो सदियों चला,
रचकर लीलाएँ अपनी इस धरा पर,
बार-बार अनंतकाल से
गीतों, गजलों, कविताओं के बने
किरदार
सदियाँ गवाह हैं।
सिमटे हैं हम
आगोश में जब भी
इकदूसरे की
मिला है संबल हमें,
टूटे हैं हम,दरके हैं हम
सदियों चाहे
मगर चूर-चूर होकर बिखरे नहीं कभी,
सदियाँ गवाह है।
- डा.नीलम , अजमेर
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