एक विहंगम दृष्टि सुरों के उत्सव तानसेन समारोह 2024 पर
मुकेश तिवारी
शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में ग्वालियर का नाम बड़े फक्र के साथ लिया जाता है . क्यों कि सुर सम्राट तानसेन का नाम इस ऐतिहासिक शहर से तकरीबन 500बषों से जुड़ा हुआ है.मुगल सम्राट अकबर के नवरत्नों में से एक तानसेन का जन्म ग्वालियर से 45 किलोमीटर दूर बसे गांव बेहट में हुआ था.
आधुनिकता का आज कितना ही विस्फोट हुआ हो,लेकिन जो शास्त्रीयता है उस पर आधुनिकता का कोई असर तारी नहीं होता क्योंकि शास्त्रीयता अथवा क्लासिकल अभिव्यकित एक शाश्वत सच का सृजन करती हैं जो काल से परे होता है।वर्तमान होते हुए भी वह हर काल में समादूत होता है।इसलिए संगीत सम्राट तानसेन हर काल में अपनी जादुई गायकी के कारण अमर रहेगे इस साल संगीत शिरोमणि तानसेन की स्मृति में हर साल आयोजित होने वाले शास्त्रीय संगीत समारोह का शताब्दी बर्ष है.तानसेन समारोह दुनिया का ऐसा अनूठा संगीत समारोह हैं जो सत्ता और समाज के दशक दर दशक तेजी से बदलते प्रतिमानों के बावजूद आज भी अपने गरिमापूर्ण आयोजन के साथ गवालियर को पूर्णतः प्रदान कर रहा हैं। समय का चक्र घूमता रहा , 99 सालों से अधिक के इस सफर में इस समारोह ने अनेक उतार चढ़ाव देखे हैं.अनेक दैवी और प्राकृतिक विपदाओं तवायफों के घुघरूओं की झंकार से लेकर धुरंधर गान मनीषियों के आलाप तक कितने ही रंग देखे हैं।भारतीय शास्त्रीय संगीत में तानसेन का नाम एक किंवदंती हैं ।अभिलेखों से ज्यादा कला रसिकों और विद्धत समुदाय के मानस में उनका मान हैं ,जबकि लोगों ने उनके संगीत के जादू को देखा सुना नहीं। पांच सौ बर्षो का अन्तराल एक बडा अंतराल होता है लेकिन हिन्दुस्तान की श्रुति परम्परा का कमाल है कि आज भी संगीत सम्राट तानसेन का चमत्कार जनमानस में कतई कम नहीं हुआ बल्कि बढ़ा ही हैं .कालजयी संगीतकार तानसेन को समर्पित तानसेन संगीत समारोह आज विश्व संगीत परिदृश्य में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत परम्परा को सुदृढ़ कर रहा है,
जो श्रद्धा और विश्वास उनके नाम के प्रति कायम हैं। बहुत कम विभूतियों को यह सौभाग्य प्राप्त हैं।
हालांकि संगीत सम्राट तानसेन ऐसे ही महान नही बने उन्होने शास्त्रीय संगीत को बढावा देने के लिए हमेशा प्रयास किए 14 और 15 वी शताब्दी में उन्होनें बेटों के साथ- साथ बेटी सरस्वती को भी शास्त्रीय संगीत की तालीम दी। जबकि उस दौर में महिलाओं का गायन विधा में आना उचित नहीं माना जाता था, लेकिन इसके बावजूद भी उन्होने इस परंपरा को शुरू किया,जिसका परिणाम है कि वर्तमान में शास्त्रीय संगीत में पुरूषों के साथ महिलाएं बराबर की भूमिका अदा कर रही है .संगीत सम्राट तानसेन हर काल में अपनी जादुई गायकी के कारण अमर रहेंगे । यूनेस्को द्वारा गत वर्ष ग्वालियर को सिटी आफ़ म्यूजिक के सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है ।
तानसेन का ग्वालियर से गहरा रिश्ता रहा हैं इसकी नीव ग्वालियर रियासत के तत्कालीन महाराज सिधिया के काल से उन्हें श्रद्धांजलि स्वरूप याद करने की परम्परा रही है। 1924 से तानसेन उर्स के नाम से इसकी शुरूआत हुई थी . यदि हम तानसेन समारोह के पिछले 99बषो का सिंहावलोकन करें तो पता चलेगा कि इसके स्वरूप में निरंतर विकास हेतु परिवर्तन होते आए हैं . संगीत के क्षेत्र में इस प्रतिष्ठा पूर्ण राष्ट्रीय सम्मान की स्थापना मध्य प्रदेश सरकार ने वर्ष 1980 में की थी तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने तानसेन सम्मान के साथ धन राशि देने का सिलसिला शुरू किया था ,जो अभी तक अनवरत जारी है अब तक 54गायकों को तानसेन अलंकरण से सम्मानित किए जा चुका है. अब तानसेन सम्मान से विभूषित किए जाने वाले गायक को दी जाने वाली राशि में इजाफा कर इसे 5 लाख रूपये कर दिया गया है.यह सच है बीते कुछ सालों से तानसेन समारोह की भव्यता में इजाफा हो रहा है.लेकिन संगीत के स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है.संगीत की राजनीति ने इस अनूठे आयोजन की आत्मा को कुचलना प्रारंभ कर दिया है.तानसेन समारोह के दौरान मूर्धन्य संगीतकारों को सुनने की लालसा में जुटने वाले संगीत रसिकों की इस समारोह से क्या अपेक्षा है इस और किसी का ध्यान नहीं है, सबके सब प्रयोग करने में जुटे हुए हैं और यह विडंबना ही है कि समारोह में शिरकत करने की अभिलाषा में कोई भी इन प्रयोगों के खिलाफ स्वर मुखर करने का साहस नहीं दिखा पा रहा
विवादों से मुक्ति नहीं
. तानसेन समारोह के आयोजक द्वारा संगीतज्ञों को प्रस्तुति देने की समय-सीमा निर्धारित कर दिए जाने से संगीत रसिक क्षुब्ध है. वहीं तानसेन शताब्दी समारोह के मुख्यमंत्री मोहन यादव द्वारा विधिवत शुरूआत से पहले ही बखेड़ा खड़ा हो गया है दिलचस्प बात यह है कि पूर्व में तानसेन सम्मान से सम्मानित हो चुके ग्यारह शीर्षस्थ कलाकारों को पांच दिवस पूर्व विधिवत शताब्दी समारोह में प्रस्तुति देने के लिए उज्जैन संगीत महाविद्यालय में पदस्थ संजय मिश्रा द्वारा आमंत्रित किया गया था.तानसेनके प्रति असीम निष्ठा रखने वाले पंडित विद्याधर व्यास (ग्वालियर घराने के जाने-माने गायक) ने अपने पूर्व से निर्धारित कार्यक्रम को निरस्त कर तानसेन समारोह में आने की विधिवत स्वीकृति दे दी थी कुछ इसी तरह की स्वीकृति पंडित सतीश व्यास (सतूर वादक) ने भी दी थी , पंडित विद्याधर व पंडित सतीश व्यास जैसा सलूक नौ अन्य आमंत्रित कलाकारों के साथ भी किया गया, शताब्दी समारोह से ठीक तीन दिन पहले गुरु वार को अचानक आमंत्रित सभी ग्यारह कलाकारों को बताया गया कि आपको तानसेन शताब्दी समारोह के अंतर्गत जिस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया गया था वह कुछ कलाकारों के आने में असमर्थता व्यक्त करने के कारण निरस्त कर दिया गया है , आयोजकों के इस वता॑व से आमंत्रित क ई वरिष्ठ कलाकार काफी तिलमिलाए हुए हैं उनका कहना है कि मध्यप्रदेश के संस्कृति संचालनालय के कार्यक्रमों का विवादों से घिरना आम बात हो चुकी है.
उप नगर ग्वालियर के हजीरा चौराहे के निकट स्थित सुर सम्राट तानसेन के समाधि स्थल के पास विशाल पंडाल में बने मंच पर देश विदेश के विख्यात कलाकारों की गायन और वादन की शानदार प्रस्तुति से प्रतिष्ठा तानसेन समारोह आल्हादकारी बन बन जाता है.उस्ताद अलाउदूदीन खाॅ संगीत एंव कला अकादमी के माध्यम से मध्य प्रदेश का संस्कृति विभाग सिंधिया रियासत कालीन परम्परा का निर्बहन करते हुए हर वर्ष ग्वालियर में तानसेन समारोह का भव्य आयो जन करता हैं।जिसमें हर जाति,धर्म व सम्प्रदाय से ताल्लुक रखने वाले ख्यातनाम भारतीय संगीत मनीषियों के साथ अब विदेशी संगीत मनीषि विशुद्ध रूप में संगीत श्रद्धांजर्लि अर्पित करने यहां उपस्थित होते है और संगीत की स्वर लहरियाॅ बिखेर कर संगीत रसिकों कोभी मंत्रमुग्ध करते हैं । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष का तानसेन समारोह इस श्रृंखला की 100वीं कडी हैं।
कला देश और काल की सीमाओं सें परे होती हैं और उसके साधक कलाकार काल कवलित होने पश्चात भी अमृत्य होते ऐसे ही अमर कलाकारों में से एक है ।संगीत सम्राट तानसेन उन्होने अपनी संगीतकला से जो मान सम्मान प्राप्त किया उसके कारण वे आज भी व भारतीय संगीत के चमकदार नक्षत्र बने हुए है। भारतीय संगीत की उन्नति एवं प्रचार प्रसार में उनका अथक योगदान रहा ।
यह अगल बात हैं कि पन्द्रहवी शताब्दी के विख्यात संगीतज्ञ तानसेन के बारे में जितने तथ्य हैं उससे कही ज्यादा किंवदन्तियां है। ध्रपद शैली के गायक और दीपक राग के विशेषज्ञ तानसेन ग्वालियर जनपद के बेहट गांव में एक ब्राह्मण परिवार में जन्में थे । उनके पिता का नाम मकरन्द पाण्डें और माता का नाम कमला था । तानसेन को बचपन में सब तन्ना ,त्रिलोचन ,तनसुख और रामतनु के नाम से पुकारते थे ।
जहा तक तानसेन के शैशवकाल और उनके जीवनकाल में घटी घटनाओं का संबध हैं वे किंवदन्तियों और जनश्रुतियों के जंजाल में काफी उलझी हुई है इस सबंध में हकीकत सामने लाने के लिए और शेाध करने की आवश्यकता हैं।किंवदती हैं कि तन्ना जन्मजात गूगे थे। मगर बालकाल से ही संगीत के प्रति उनका गहरा लगाव था।तन्ना अपने पालतू मवेशी को चराने के लिए नियमित रूप से झिलमिल नदी के किनारे जगल में ले जाते थे और फिर मवेशी को चरने छोडकर वे निकट के एक अति प्राचीन शिव मंदिर में शिव आराधना करने में मगन हो जाते थे। बताया जाता हैं कि तन्ना की सेवा से भगवान शिव इतने खुश हुए कि उन्होने तानसेन को दर्शन दे दिए और उनसे कहा कि वे अपनी पूरी शक्ति के साथ तान छोड़ें।भोले नाथ के आदेश पर तानसेन ने जैसे ही तान छोडी उनकीे तान का आवेग इतना तीव्र था कि भोले बाबा की मढिया टेढ़ी हो गई । स्वंय तानसेन भी इस चमत्कार से भौचक्के रह गए ।
इतिहासकारों के मुताबिक तानसेन जैसे ही किशोर हुए तो वे संगीत की तालीम पाने के लिए गुरू की शरण में चलें गए गुरू ने जो सिखाया तानसेन ने मन लगाकर सिखा । तानसेन ने पीर बाबा मोहम्मद गौस से लेकर मथुरा के स्वामी हरीदास से संगीत के तमाम सारे गुर सीखे तानसेन ने स्वामी जी से संगीत की तालीम लेनेके साथ पिंगल शास्त्र भी सिखा वही गौस साहव से गायन की तालीम ली सुर सम्राट तानसेन को हिन्दुस्तानी संगीत के साथ ईरानी संगीत में महारत हासिल थी। तानसेन के बारे में जो जनश्रुतियाॅ प्रचलित हैं , उसके अनुसार तानसेन को संगीत से जो खयति मिल वह मोहम्मद गौस और हरिदास की देन था।इतिहासकार डाॅ हरिहर निवास द्धिवेदी शिवसिह डाॅ सरयू प्रसाद सहित मोहम्मद करम इमाम के शोध का भी यही निचोड था।
कुछ इतिहास ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि संगीत की विधिवत तालीम के लिए तानसेन स्वामी हरिदास और मोहम्मद गौस से तालीम लेने के बावजूद भी राजा मानसिंह तोमर द्धारा खोले गए संगीत विघालय में संगीत सीखने गये थे।उन्होने गोविन्द स्वामी का शिष्यत्व भी स्वीकार किया संगीत की साधन करते करते तन्ना पाण्डे जव संगीत विधा में पारंगत हो गए और उन्हे ध्रुपद में सिद्धहस्त माना जाने लगा । तानसेन ने सर्वप्रथम शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत खाॅ के यहां राजाश्रय पाया फिर रीवा रियासत में उन्हें संरक्षण मिला तो
उन्होने नित नये प्रयोग कर अद्धितीय गायन और मौलिक पद रचनाओं के द्धारा संगीत के क्षेत्र में अभूतपूर्व ख्याति प्राप्त की जैसे ही तानसेन चमत्कारिक गायन की खबर मुगल सम्राट अकबर के कानों तक पहुंची वैसे ही कला प्रेमी बादशाह ने जलाल खाॅ को तानसेन को लाने के लिए बांधवगढ़ भेज दिया । तानसेन अपनी विद्धता के बल पर तानसेन सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में सें एक खास रत्न बन गए।
तानसेन ने संगीत साधना के साथ ही संगीत विधा पर साहित्य सृजन भी किया मियां की मल्हार मियां की सांरग दरबारी कानडा तानसेन की ही देन माने जाते हैं ।कुछ संगीतज्ञों की धारणा हैं कि तानसेन द्धारा उस काल में भारतीय और ईरानी संगीत का फ्यूजन ईजाद किया था । तानसेन ने अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए सितार से मिलता जुलता बांध रबाब का भी निर्माण किया । कडवा सच तो यह हैं कि तानसेन हकीकत में तानसेन थे । तानसेन यदि सिद्धहस्त और मौलिक संगीतज्ञ न होते तो बिना किसी कार्पोरेट एड प्लांनिंग के निरंतर पांच शताब्दियों तक याद नहीं किए जाते ।सम्राट अकबर की दिल्ली भले ही तानसेन को भूल गई हो लेकिन ग्वालियर के बाशिन्दे नही भूले हैं।
ग्वालियर में प्रति वर्ष मनाये जाने वाले तानसेन समारोह ने अनेक उतार चढ़ाव देखे है अनेक दैवी और प्राकृतिक विपदाओं को पार किया हैं और आज संपूर्ण देश में यह समारोह अद्धितीय स्थान रखता हैं । वर्तमान रूप में मनाये जाने वाले इस समारोह की तमाम सारी खूबी हैं संगीत सम्राट तानसेन की समाधि के करीब बना पण्डाल संगीतकारों के लिए विशेष प्रेरणा स़्त्रोत बन जाता है ,फिर दिन और रात को प्रतिकूल मौसम की परवाह किए बगैर हजारों की संख्या में संगीतप्रेमी श्रोतागण संगीत का रसास्वादन करने आते हैं। पिछले 100सालो में भारत में जन्मे अधिकांश नामचीन संगीतज्ञों ने संगीत सम्राट तानसेन की समाधि पर हाजिरी दी है,चाहे वे पंडित रविशंकर हो गंगूबाई हंगल हो मल्लिकार्जुन मंसूर हो, शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हों पंडित कृष्णराव शंकर हो या पंडित भीमसेन जोशी हो या डागर बंधु उस्ताद अमजद अली खान हों या असगरी बाई हो इस साल 15दिसम्बर से शुरू होकर 19दिसमबर 2024 तक उपनगर ग्वालियर में तानसेन समाधि परिसर के निकट होने वाली प्रातः और सायंकालीन सभाओं में 153 भारतीय और 10विदेशी (जापान,इटली, इजरायल, सहित फ्रांस के) कलाकार अपनी प्रस्तुति देंगे.
लेखक-- स्वतंत्र पत्रकार हैं
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