काव्य
गीत : पा गया कोई अनैतिक लीज पर पट्टा
लोमड़ी जी ने किया है मन बहुत खट्टा
अब गधी से ही करेंगे प्यार की बातें ।
भेड़िए समझे नहीं इंसानियत का धर्म
लग रहा वातावरण भी हो गया बेशर्म
स्वार्थ में डूबा रहा जो क्यों करे सत्कर्म
जुड़ गया व्यापार से संवेदना का मर्म
हो रही नीलाम अस्मत लग रहा सट्टा
सत्यनिष्ठा ने शुरू कर दीं यहाँ घातें।
आवरण में ढोंग पलता कौन पूछे हाल
खा गया धोखा यहाँ जो हो गया कंगाल
अब सियारों की गली भी खूब मालामाल
और जनता ने चुनी है भेड़ जैसी चाल
है नहीं चिंता लगे सम्मान पर बट्टा
कर रहे रंगीन अपनी लोग अब रातें।
वासना की आग में सद्भावना से खेल
कर रहे बगुले यहाँ के हंसिनी से मेल
हंस को भेजा किसी ने व्यर्थ में ही जेल
किस तरह फूले- फलेगी न्याय की अब बेल
पा गया कोई अनैतिक लीज पर पट्टा
काम अपना हो गया फिर मार दीं लातें।
लोमड़ी जी ने किया है मन बहुत खट्टा
अब गधी से ही करेंगे प्यार की बातें।
- उपमेंद्र सक्सेना एडवोकेट
'कुमुद- निवास', बरेली (उत्तर प्रदेश)
मोबा.-9837 944187