काव्य :
उगता सूरज
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उदित गगन में सूर्य चंद्र ये,जग में तभी प्रकाश है|
चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|
निशा समाये चली गोद में,प्रातः का उपहार है|
सकल भुवन में रहे कोलाहल,जीवन का आसार है|
धरा सभी का पोषण करती,अन्न में भरे मिठास है|
चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|
विविध भांति की धरा जगत में,विविध भांति फलफूल हैं|
ऋतु अनुसार उपजते हैं,सब,मानव के अनुकूल हैं|
धरा करे पोषण मानव का,इसका तो आभास है|
चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|
धरा एक है किन्तु उपज तो,भांति भांति रस रंग हैं|
कुछ अतिशय सौन्दर्य लिये हैं,कुछ अतिशय बहुरंग हैं|
विविध धातुएँ धरा समाये,देख रहा आकाश है|
चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|
दूर क्षितिज तक,मानव मन का,मन ही मन विस्तार है|
उगता सूरज देता सबको,जीवन का आसार है|
सौम्य जगत ये जीवन जीने,का देता विश्वास है|
चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|
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- प्रदीप मणि तिवारी/ध्रुव भोपाली,भोपाल म.प्र.
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