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काव्य : उगता सूरज - प्रदीप मणि तिवारी/ध्रुव भोपाली,भोपाल


 काव्य : 

उगता सूरज

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उदित गगन में सूर्य चंद्र ये,जग में तभी प्रकाश है|

चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|


निशा समाये चली गोद में,प्रातः का उपहार है|

सकल भुवन में रहे कोलाहल,जीवन का आसार है|

धरा सभी का पोषण करती,अन्न में भरे मिठास है|

चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|


विविध भांति की धरा जगत में,विविध भांति फलफूल हैं|

ऋतु अनुसार उपजते हैं,सब,मानव के अनुकूल हैं|

धरा करे पोषण मानव का,इसका तो आभास है|

चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|


धरा एक है किन्तु उपज तो,भांति भांति रस रंग हैं|

कुछ अतिशय सौन्दर्य लिये हैं,कुछ अतिशय बहुरंग हैं|

विविध धातुएँ धरा समाये,देख रहा आकाश है|

चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|


दूर क्षितिज तक,मानव मन का,मन ही मन विस्तार है|

उगता सूरज देता सबको,जीवन का आसार है|

सौम्य जगत ये जीवन जीने,का देता विश्वास है|

चांद उजाला लेता सूर्य से,तब धरणी में उजास है|

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 - प्रदीप मणि तिवारी/ध्रुव भोपाली,भोपाल म.प्र.

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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