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ठिठुरती रातें - प्रदीप छाजेड़, बोरावड़


 ठिठुरती रातें

जन्म से शैशव,बचपन, किशोर, युवा, प्रौढ़,और वृद्धावस्था ये सभी तो परिवर्तन की एक से एक घटित होने वाली अवस्था है ।बीज से वृक्ष, नाले से नदी, नदी से सागर ये सब परिवर्तन के सिद्धांत को रात-दिन उजागर करते हैं ।मौसम का परिवर्तन अपने हिसाब से होता रहता है । वर्तमान में अभी सर्दी का मौसम है । मैं याद करने में भूल नहीं करूँ तो स्व: दादीसा, स्व: बाई माँ, ममी और काकीसा आदि हम सब भाई-बहनों को बोलते थे कि खाने- पीने का आनन्द लेना हो तो सर्दी के मौसम में आता है । सर्दी के मौसम में गर्म खाना, आग तपना आदि - आदि का अनुभव अलग ही होता है । सर्दी के मौसम में पानी का शरीर पर लगना जैसे बर्फ को हम हाथ में ले रहे है । सर्दी का मौसम जैसे - जैसे बढ़ता है तो रात का तापमान भी कम होता जाता है और रातें भी हमको ठिठुराती है। सर्दी में सुहानी धूप का मौसम , कड़कती शीत का मौसम प्रकृति की इस अनोखी रीत का मौसम अनवरत चलता रहता है। किसी ने कहा कि सर्दी की रातों को आसमां ने तो ढकने की कोशिश की मगर कुंठित सी धरती तो अब भी रोने को है , क्योंकि कोई तो बढाये कदम थाम लेने की खातिर जिंदगी जो ठिठुरती रातों में सोने को है। सर्दी की ठिठुरती रातों में असम्भावित शीतलता और शांति होती है। यह रातें धूप से बाहर निकलने वाले हर प्रदूषण के बावजूद सुनसान होती हैं। ठंड की हवा और चाँदनी की रौशनी के मिलन से पूरा मौसम रात को सर्दी का होता है । फूलों से लदे खेत, हरे-भरे चहुंओर जंगल, रात की ठंडी हवा,चंदा मामा का रंग चंचल आदि - आदि सर्दी में अपना अलग ही अनुभव करवाते है। परिवर्तन संसार का नियम है।हर युग का आरम्भ और अंत भी और इस दौर में दुनिया बहुत तेज़ी से बदलती है । हमारे द्वारा समय के साथ बदलने की तैयारी होनी चाहिए वरना हम पीछे छूट जायेंगे । पढ़ा था की-- Time to Time Update & Upgrade" समय के साथ चलिये और सफलता पाईये। हमारे को  बस विवेक और संयम आदि साथ - साथ हो तो सुख सृष्टि निर्मित होते देर नही लगेगी। रात के बाद दिन, पतझड़ के बाद वसन्त और गर्मी के बाद सर्दी आदि जैसे स्वतः ही आ जाती है , इसी प्रकार जीवन में दुःख के बाद सुख अपने आप आ जाता है। प्रकृति के नियमानुसार कोई भी परिस्थिति सदा एक सी नहीं रहती है । मौसम भी तो अपने हिसाब से बदलता ही रहता है। पतझड़ से वसंत, गर्मी के बाद सर्दी आदि बदल-बदल कर आते ही हैं। उसी तरह जीवन में दु:ख के बाद सुख, सुख के बाद दुःख की स्थिति रह-रह कर आती ही रहती है । जीवन में  कभी भी एक सी कोई भी परिस्थिति नहीं रहती है क्योंकि परिवर्तन सृष्टि का नियम है ।

 यह शाश्वत प्राकृतिक अधिनियम है ।

  - प्रदीप छाजेड़, बोरावड़ 

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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