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काव्य : सरप्लस - विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल


 काव्य : 

सरप्लस


बड़ी सी चमचमाती शोफर वाली 

कार तो है 

पर बैठने वाला शख्स एक ही है 

हाल नुमा ड्राइंग रूम भी है 

पर आने वाले नदारत हैं 

लॉन है, झूला है, फूल भी खिलते हैं ,

 पर नहीं है फुरसत , खुली हवा में गहरी सांस लेनें की

छत है बड़ी सी , पर सीढ़ियां चढ़ने की ताकत नहीं बची।

बालकनी भी है 

किन्तु समय ही नहीं है 

वहां धूप तापने की

टी वी खरीद रखा है 

सबसे बड़ा , 

पर क्रेज ही नहीं बचा देखने का

रैक भरे हैं किताबों से

मन ही नहीं होता पढ़ने का ।

तरह तरह के कपड़ों से भरी हैं अलमारियां 

गहने हैं खूब से , पर बंद हैं लॉकर में

सुबह नाश्ते में प्लेट तो सजती है 

कई , लेकिन चंद टुकड़े पपीते के और दलिया ही लेते हैं वे 

तथा रात खाने में खिचड़ी, 

रंग बिरंगी दवाओं के संग 

एक मोबाइल लिए

पहने लोवर और हुडी 

किंग साइज बेड का 

कोना भर रह गई है 

जिंदगी ।


 - विवेक रंजन श्रीवास्तव , भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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