रंग्शीर्ष भोपाल का लघु नाट्य प्रयोग
भोपाल । रंग्शीर्ष भोपाल , ने रीना बिष्ट के निर्देशन में विगत दिवस दो कहानियां शीर्षक से स्व हरिशंकर परसाई की प्रसिद्ध कहानी "वह जो आदमी है ना " का नाट्य रूपांतरण तथा श्रीमती कांता राय की कहानी "मां की नजर" के नाटक रूपांतरण की लघु प्रस्तुतियां दुष्यंत संग्रहालय भोपाल के सभागार में आयोजित की ।
"वो जो आदमी है ना" का प्रसिद्ध व्यंग्य है जिसमें वे लोगों के दोहरे चरित्र को उजागर करते हैं । रचना जीवन के विभिन्न पहलूओं निन्दा, स्वार्थ, स्वहित, चरित्रहीनता पर कटाक्ष करती है । कितने ही लोग है जो 'चरित्रहीन' होने के अवसर नहीं मिल पाने से 'चरित्रवान' बने रहते हैं।
निंदा में, अपने परिवेश में तांक झांक करने में लोग मजे लेते हैं। इसी कथानक को नाट्य संवाद शैली में मंच पर केवल पंद्रह मिनट में प्रस्तुत किया गया । कलाकार बालक राम यादव तथा सौरभ राजपूत ने संवाद के उतार चढ़ाव और निर्देशक के अनुरूप अभिनय से कहानी को दर्शकों के लिए सहज ग्राहय बना दिया।
नाटक पर टिप्पणी करते हुए प्रसिद्ध भाषाविद डा जवाहर कर्णावट ने कहा कि सीमित मंच साधनों के बिना भी प्रस्तुति बहुत अच्छी लगी। नाट्य लेखक विवेक रंजन श्रीवास्तव ने कहा कि इस तरह की
लघु एकांकी पूर्वरंग के अंतर्गत प्रस्तुति हेतु उपयुक्त हैं , उन्होंने रंगशीर्ष की टीम को उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।
दूसरी प्रस्तुति भोपाल की लेखिका कांता राय की लघुकथा "माँ की नजर" की नाट्य रूपांतरण प्रस्तुति थी । पत्नि की खुशी और जरूरत का ख्याल रखने वालों को संयुक्त परिवार में जोरू का गुलाम समझा जाता है, इस विसंगति पर चोट करते कथ्य को संवाद शैली में मंच पर अभिनित किया गया। हिमांशी मालवीय एवं सौरभ राजपूत ने अच्छा अभिनय और संवाद प्रस्तुत किया।
कुल मिलाकर रंग शीर्ष का यह प्रयास सराहनीय है। संस्था के श्री मेहता ने बताया कि जल्दी ही कविताएं भी मंच पर प्रस्तुत की जाएंगी ।
रपट : विवेक रंजन श्रीवास्तव भोपाल