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काव्य : ग़ज़ल - प्रदीप मणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल


 काव्य : 

ग़ज़ल

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ये आफ़ताब मुसलसल सफ़र में रहता है|

वो ज़ीस्त दे के हमारे ज़िगर में रहता है|


कोई वतन के लिए जान जो लुटा बैठा,

वो तब्सिरा में सुना है सिफर में रहता है|


जो गाँव का है नहीं ज़िल्लतें वो जाने क्या,

जिसे है अम्न मुसलसल शहर में रहता है|


जो सरहदों में सिपाही वतन के हैं, ज़िल्लत,

कोई वो जाने भी कैसे जो घर में रहता है|


नवाब है वो परिन्दा भी तो जमाने में,

बगैर फिक्र वो मुसलसल शज़र में रहता है|


ये वक्त भी तो मुसाफ़िर गुज़र ही जाए वो,

कभी ये सुब्ह कभी दोपहर में रहता है|


किसी को चैन मिले कोई ज़िल्लतों में भी,

कोई जहाँ में मगर पुर असर में रहता है|

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प्रदीप मणि तिवारी ध्रुव भोपाली भोपाल मध्यप्रदेश,

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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