प्रकृति का उत्सव और शृंगार है मकर संक्रांति
भास्करस्य यथा तेजो मकरश्वस्य वर्धते।,
तथैव भवति तेजो वर्धतामिति कामये।
भारतवर्ष त्योहारों का देश है.हर बदलती ऋतु हर्ष. उल्लास. खुशियों के विविध रंग लेकर आती है. खेतो में झूमती लहलहाती फसलों के बीच नववर्ष के स्वागत में कहीं बिहू के पांव थिरकते हैं तो कहीं झारखंड में टुसू पर्व की धूम मचती है। पहले दिन का स्वागत राग.उत्सव.व्यंजनो की मधुरता के साथ होता है। इस दिन प्रकृति की अभ्यर्थना के प्रतीक स्वरुप टुसू देवी की मूर्त की स्थापना की जाती है.और सात दिनो तक प्रकृति पूजक आदिवासी समुदाय उनकी पूजा अर्चना करता है ,नदी में स्नान कर पवित्र नदी से कलश भरकर लाता है ।घरों में विविध पकवान जैसे झारखंड में धुसका ,पकौडी, तथा असम में पुआ, आदि बनाये जाते हैं।
केरल में विषु का स्वागत परंपरागत ढंगसे होता है.।.सब कुछ कितना मोहक और उत्साहित करता है जीवन शैली के बदलाव और ऋतु परिवर्तन के स्वागत मे .सूर्य के उत्तरायण होते ही.मौसम के रंग बदलने लगते हैं..शीतलता से ठिठुरती हुई धरती उष्मा संजोने लगती है..हवाओं में एक मधुरता.सी घुलने लगती.है.पूरा परिवेश बदल जाता है.और यही अवसर होता है हमारे देश में.पर्वों और त्योहारों का मौसम.। विविधिता भरे भारत देश में कहीं लोहडी के ढोल बजते हैं तो कहीं कहीं बिहू के नृत्य में पांव थिरकते हैं..दक्षिण में पोंगल की मिठास और उत्तर भारत में संक्रांति या खिचड़ी मनाई जाती हैं..नयी फसल के स्वागत का यह प्रकृति पर्व अनूठा होता है.।सूरज की स्वर्णिम किरणें भी मन को भली लगती हैं.पतंगो का उत्सव जैसे बाल.युवा.वृद्ध सभी को प्रिय है.पतंगे आकाश में इस तरह उडान भरती हैं जैसे मानव मन और उसकी कामनाए. न जाने क्यों इस त्योहार में मुझे अपना बचपन बहुत याद आता है ।चुपके चुपके ,मन के आँगन में -खोजती हूं..दो चोटी वाली ,वह छोटी सी लड़की,जो चुपचाप- गुमसुम सी ,छोटे छोटे क़दमों सेतय करती है -उलझती जाती पगडण्डी,जीवन की.। कभी मकर संक्रांति पर ,तिल्कुटों की भीड़ में -खोजती है वह गंवई स्वाद वाली रेवड़ी और गजक जिनका स्वाद घुलने महकने लगता है यादों में । सचमुच यह प्रकृति के वैभव और शृंगार का पर्व अपूर्व है.मोहक और स्मरणीय है.अपनी कुछ पंक्तियां समर्पित करती हूं--तिल -गुड की मिठास -लाये खुशियों को पास ,मिले अपनों का प्यार -मधुर जीवन संसार ,करे धरती श्रृंगार -गगन जगमग -अपार ।हमारे उत्तर प्रदेश में खिचड़ी खाने और खिलाने की परम्परा है।नये अनाज को भूनकर गुड के.साथ, तिल मिलाकर लडडू बनाए जाते हैं।सुबह स्नान कर ईश्वर को भोग अर्पित कर खिचड़ी ,तिलकुट आदि खाया जाता है तो बिहार में दही चिवडा खाते हैं। तिल के बने मीठे व्यंजन खाना अनिवार्य होता है। सचमुच मकर संक्रांति का यह पर्व अपनी विविधतापूर्ण परंपरागत संस्कृति के कारण लोकप्रिय और पवित्र माना जाता है। धरती के शृंगार का उत्सव है मकर संक्रति।
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं,
मांदर के ताल पर पुरवा लहराई हैं
गुड की मिठास लिये रिश्तोंको सजने दें
सखी आज मौसम को जी भर संवरने दें
हरियाली खेतों की,धानी चूनर मन की
टुसू का परब आज नाचे मन का मयूर
मतवारे नैनों में प्रीत का नशा हैं पूर
सूरज की नई किरऩ लालिमा सी छाईहै
झूम उठी धरती की मोहक अंगडाई हैं।
--पद्मा मिश्रा , जमशेदपुर