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काव्य : ये पूस की रात भयावह - प्रियंका कुमारी मानगो जमशेदपुर



 

काव्य : 

ये पूस की रात भयावह 


सिकुड़ रहीं हैं चादरें,

ठिठुर रहा है तन बदन ,

सन्नाटे छाये गलियों में,

थर थर काँपता है देह,

ये पूस की रात भयावह ।।


जीव- जन्तु सब ओझल,

छा गई है चिर तमिस्रा   ,

घना कोहरा तनकर खड़ा,

आदमी सब ठिठुरा डरा ,

ये पूस की रात भयावह ।।


गर्म  रजाई  ठंडी पड़ी,

दीनकर जी भी मंद पड़े,

दिन छोटा लम्बी रातें,

ठिठुरे रहते हांथ पांव,

ये पूस की रात भयावह ।।


काम काज से छुट्टी मिली,

गर्म चाय की  चुस्की लें ,

घर चलें रजाई दुबकी लें ,

थकान दूर प्रातःअलसाई,

ये पूस की रात भयावह ।।


सुख - दुख हैं सब भूले,

होती नहीं अपनों से बात,

बाधा  बनकर  है  खड़ी

ठिठुरन ठंडी काली रात,

ये पूस की रात भयावह।।


तकनीकी है सहयोगी बनता,

मिलना जुलना मन को खलता,

मोबाईल टीवी पास रहे ,

और कोई नहीं आस रहे  ,

ये पूस की रात भयावह।।


सिकुड़ रहीं हैं चादरें,

ठिठुर रहा है तन बदन ,

सन्नाटे छाये गलियों में,

थर थर काँपता है देह,

ये पूस की रात भयावह ।।

 - प्रियंका कुमारी मानगो जमशेदपुर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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