काव्य :
मकर संक्रांति
ली है मौसम ने अँगड़ाई
है ऊष्मा तन मन मे आई
ऋतु,बदली,बदली उड़ आई
आई मकर संक्रांति आई
मन में उठ आई उमंग
उड़ता मन जैसे हो पतंग
मन भावन है लगता सब
खिल उठे हैं अंग प्रत्यंग
हर्षित ,मीठा मौसम जगा
तिल, गुड़ ,पकवान से सजा
गजक,तिलकुट हुए एक जुट
लड्डू का लेते सब जन मजा
पवन ,संगीत बन बह रही
है हर पतंग से कह रही
ऊँची उड़ो, रखो डोर थाम
सब मन से जुडो, न हो विराम
सूर्य उत्तरायण है हो चला
करने थल ,जल का भला
पावन नदियाँ क़रतीं स्नान
करते भास्कर का, हम ध्यान
तन ,मन स्वच्छ व स्वस्थ लगें
रिश्तों में अब ऊष्मा सजे
जन मन मे रखें न कोई भ्रान्ति
ब्रज,उत्सव सजायें है मकरसंक्रांति
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
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