काव्य :
//ग़ज़ल//
रहा जीतना दिल,तो हम हार बैठे|
हमारी अना को,तो हम मार बैठे|
कभी तो लहर आखिरी आएगी
ही,
रहे हाथ थामे,भी पतवार बैठे|
मुहब्बत कभी तो,मेरी वो मिलेगी,
वो जब भी मिले,कर के मनुहार बैठे|
उन्हें आशिक़ी में,बना लेंगे अपना,
यही रब से कर के,हैं इकरार बैठे|
मुहब्बत में ग़फ़लत,करें वो फरेबी,
के जब वक्त आया,तड़ीपार बैठे|
हसीना कई शोख़,कर केअदाएं,
दिया तोड़,जिस पर थे दिल वार बैठे|
कई फ़लसफ़े,इश्क़ नाकाम जिनका,
दिखें बज़्म में,वो तो दो चार बैठे|
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प्रदीप ध्रुव भोपाली भोपाली,भोपाल एमपी,
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