आम बजट - दूसरा पक्ष
रघु ठाकुर
वर्ष 2025 का आम बजट को मीडिया का एक हिस्सा मध्यवर्ग के लिए स्वर्ग बता रहा है । निसंदेह इस बजट में मध्य वर्ग के लिए अनेक राहतें दी गई हैं। इनमें मुख्यतः 12 लाख रु तक की आय को आयकर से मुक्त करना, किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा बढ़ाकर 5 लाख करना , आयुष्मान के तहत इलाज के दायरे को बढ़ाने जैसी अनेक राहतें प्रदान की गई हैं । यह सुविधायें तार्किक भी हैं और न्याय संगत भी।
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2 फरवरी 2025 को दिल्ली की एक रैली में भाषण देते हुए कहा कि नेहरू सरकार में 12 लाख की आय पर 3 लाख, इंदिरा गांधी की सरकार में 10 लाख , मनमोहन सिंह की सरकार में ढाई लाख रुपये टैक्स देना होता था ।अब टैक्स की सीमा में छूट 12 लाख कर देने से एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार मध्य वर्ग के 3लाख 30हजार करोड़ रुपए बचेंगे , जो बाजार में आएंगे। इससे 10 फीसदी खपत बढ़ेगी। व्यापारियों को भी भारी फायदा होगा । केंद्र को जीएसटी के रूप में 40 हजार करोड रुपए बढ़ कर मिलेंगे। केंद्रीय करों में राज्यों की भागीदारी 8 हजार करोड़ रुपए ज्यादा बढ़ कर 28 हजार करोड़ रुपए ज्यादा मिलेंगे।
निसंदेह यह बजट देश के 55 करोड़ मध्य वर्ग के लिए सुखद है। परंतु , अगर हम उसे राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सोचें तो यह बहुत चिंताजनक और एक कठिन भविष्य का संकेत देता है।
इस बजट में 10 लाख करोड़ रुपए के सार्वजनिक क्षेत्र के यानी सरकारी क्षेत्र की संपत्तियों को बेचने का निर्णय हुआ है ।औसतन 2 लाख करोड रुपए प्रति वर्ष राष्ट्रीय संपत्ति को खुले बाजार में निजी हाथों में बेचा जाएगा । यह जो सुविधा मध्य वर्ग को दी है इन्हें दो लाख करोड़ रुपए की राष्ट्रीय संपत्ति को बेचकर पूरा किया जाएगा। यानी सरकार के बजट से तो मात्र 1 लाख 30 हजार करोड रुपए ही जाना है । शेष लगभग 66 से 70 फीसदी मध्य वर्ग के रियायतों की पूर्ति राष्ट्रीय संपत्ति को बेचकर की जाएगी। यह तो ऐसा हुआ जैसे कोई व्यक्ति अपने घर को बेचकर समाज सेवा करे।
बजट में इस मध्य वर्ग के सुविधाओं के कोलाहल में यह बात नज़र अंदाज़ हो गई कि बजट का 20 फीसदी तो केवल भारत सरकार के द्वारा लिए गए कर्ज के ब्याज में चुकाना है ।यह राशि कितनी बड़ी होगी जिसकी कल्पना प्रतिशत में नहीं की जा सकती । यह कर्ज और ब्याज प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है। इस कर्ज के ब्याज चुकाने के लिए 2023-2024में कुल बजट का 14 फीसदी देना था। अब यह बढ़कर 20 फीसदी हो गया है। यानी हम लोग एक राष्ट्र के रूप में निरंतर कर्जदार बनते जा रहे हैं।
क्या एक राष्ट्र के रूप में यह हमारे लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए ?
सरकारें आएंगीं जाएंगीं और प्रधानमंत्री -वित्त मंत्री भी आएंगे जाएंगे, परंतु देश का भविष्य भी सोचना होगा।
अगर मध्य वर्ग के व्यक्ति को 12 लाख की आय में ढाई लाख रुपए का टैक्स चुकाना हो तो वह खुश होगा या दुखी होगा? यही कल्पना हमें राष्ट्रीय होने के नाते भी करना चाहिए ।
भारत माता को और अधिक कर्जदार बनाकर सुविधा प्राप्त करें तो क्या यह हमारी राष्ट्रीयता होगी ? भारत माता के आभूषणों को बेचकर कुछ सुविधाएं हासिल करना क्या हमारी राष्ट्रीयता होगी? कल्पना करिए कि अगर कोई अपनी मां के जेवर बेचकर सुखोपभोग करे तो उसे हम क्या मां का वफादार कहेंगे?
बीमा के क्षेत्र में 73 फीसदी से बढ़कर 100 फीसदी विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति प्रदान कर दी गई है। यानी कुल बीमा कंपनियों का आधा काम या व्यापार विदेशी पूंजी के मालिक करेंगे। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह विदेशी पूंजी के मालिक कोई गांव - गरीब का बीमा नहीं करेंगे बल्कि बड़ी-बड़ी कंपनियों विदेशी कंपनियों और आमतौर पर उच्च वर्ग और उच्च मध्य वर्ग का ही बीमा करेंगे। इससे देश को क्या लाभ होगा ?
गरीब का बीमा हम करेंगे , अमीर का बीमा विदेशी पूंजी करेगी और किसी दिन विदेशी पूंजी बीमा कंपनियां वाले देश छोड़कर भाग जाएं तो उसे दिन देश की अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होगा ?
प्रेषक :
मुकेश तिवारी, वरिष्ठ पत्रकार