तुलसी साहित्य अकादमी मुख्यालय में पुस्तक लोकार्पण और काव्य गोष्ठी संपन्न
धर्म, साहित्य, एवं समाज को समर्पित श्री शिवकुमार दीवान के दोहे समाज को सौमनस्य का संदेश देते हैं- गोकुल सोनी
भोपाल । तुलसी साहित्य अकादमी के तत्वाधान में डॉक्टर मोहन तिवारी आनंद की अध्यक्षता, प्रभु दयाल जी मिश्र के मुख्य आतिथ्य, महेश सक्सेना के सारस्वत आतिथ्य और सुरेश पटवा एवं गोकुल सोनी के विशिष्ट आतिथ्य में डॉ. शिव कुमार दीवान की दो कृतियों “बाल मनुहार” और “दीवान दोहा सतसई” का लोकार्पण अकादमी के मुख्यालय में हुआ।
डॉक्टर मोहन तिवारी आनंद ने उपस्थित साहित्यकार बंधुओं का स्वागत करते हुए दोनों कृतियों में सम्मिलित रचनाओं की कलात्मक विवेचना प्रस्तुत की। गोकुल सोनी ने दोहा सतसई और महेश सक्सेना ने बाल मनुहार की समीक्षा प्रस्तुत की। सुरेश पटवा ने साहित्यिक गुटों की क्षुद्रता से विलग रचनाकर्म धर्म पर अडिग रहकर निर्विकार साहित्य सेवा का व्रत साधने की सार्थक बात रखी। प्रभु दयाल मिश्र ने साहित्य साधना को ब्रह्म साधना का स्वरूप निरूपित करते हुए शास्त्रोक्त प्रमाण प्रस्तुत किए।
दोहा, चौपाई, छंद, मुक्त छंद ग़ज़लों, गीतों के काव्यपाठ के मधुर वातावरण में प्रभु दयाल मिश्र ने “अथर्व वेद के पृथ्वी सूक्त का काव्यात्मक पाठ किया। लक्ष्मीकांत जावने ने “घोषणा कुँवर कुछ रन में उतरे”, प्रेम चंद गुप्ता ने “मैं फिर मधुमय गीत लिखूँगा”, अशोक धमेनिया ने वासंतिक दोहे, शिव कुमार दीवान ने “ऋतु वसंत में देखिए हरियाली चहूँ ओर”, ज्योति सक्सेना ने “महाकुंभ आस्था का महा संगम”, राजेश तिवारी ने “ पापा बूढ़े क्यों ही गए”, धर्मदेव ने “लयबद्ध वसन्त गीत”, मुग्धा सोनी ने सुंदर दोहे, सत्य देव सोनी में “वीर शिवा झाँसी की रानी हम आज़ाद लिखेंगे”, अशोक तिवारी ने “माघ मास बीता अभी आया फागुन झूम” बिहारी लाल ने “सबसे निराला है वसंत” सुनीता शर्मा ने “उभरे चन्दन भोजपत्र पर”, सुषमा श्रीवास्तव ने “पवित्र पावनी गंगा मैया करती सबका उद्धार”, सुरेश पटवा ने “अक्सर आदमी एक सवाल इंद्रधनुष से पूछता है”, सुरेश पबरा ने “जो कहते हैं एक रहें वो ही दंगे करवाते हैं”, पुरुषोत्तम तिवारी ने “ऋतुओं के राजा वसंत की”, अजय श्रीवास्तव ने “दूर तक पहली जल राशि”, अशोक व्यग्र ने “साज़ हृदय का छेड़ें”, मनीष बादल ने “हमसे तुम्हारा प्यार सम्भाला नहीं गया”, विवेक कुमार श्रीवास्तव ने “आदमी को आदमी रहने दीजिए भगवान बनायेंगे तो पराया हो जाओगे”, कमलेश नूर ने “गुरूर अपने दिल से मिटा कर तो देखो”, विश्वनाथ शर्मा ने “एक घना सुख घबराया”, सुंदर लाल प्रजापति ने “ज़िंदगी अगर प्यार मिल जाए तो सफल होती है”, महीप सिंह ने “दीप दिए मेरे बुझाकर कौन मन्दिरों को सजाता”, गोकुल सोनी ने होली पर “राधिका रंगीली आज ब्रज की छबीली आज छुपी कहां जाय दूध रहे घनश्याम रे” छंद सुनाकर सबको भाव विभोर कर दिया। श्रोताओं ने कार्यक्रम में बड़ी संख्या में अपनी उपस्थिति दी।
डॉक्टर मोहन तिवारी आनंद
अध्यक्ष तुलसी साहित्य अकादमी
भोपाल
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