काव्य :
पूज्य आचार्य श्री जी की प्रथम समाधि दिवस पर,
जेल के कैदी श्रेष्ठ बने...
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इंजी. अरुण कुमार जैन
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त्याग, तपस्या, श्रेष्ठ आचरण, महावीर सी काया,
संयम, चर्या और साधना, सतयुग को ले आया.
गंगा जैसी पावन चर्या,
सागर सी गहरायी,,
दिव्य साधना, श्रेष्ठ विश्व में,
करुणा ह्रदय समायी.
आकिंचन माटी को गुरुवर,
दिव्य शिखर दिलवाया,,
प्रतिभा स्थली'से बेटी ने, वांछित गौरव पाया.
'श्रमदान' से निर्बल, निर्धन, ने आलम्बन पाया,,
जेल के कैदी श्रेष्ठ बने,
हर घर आँगन मुस्काया.
पीर सुनी गो माता गुरुवर,
'दयोदय 'संघ बनाया,,
'पूर्णायु 'से स्वस्थ देह है,
राष्ट्र ने गौरव पाया.
'भारत बोलो ' अपनी भाषा,
स्वभिमान दिलवाया,,
'कुंडलपुर'भाग्योदय 'माड़िया
ने नव गौरव पाया.
नमक न चीनी न फल सब्जी
का अहार लेते थे,
वाणी, अधर व कर से सबको, सुधापान देते थे.
समय, योग, सुधा, प्रमाण से
त्रिशतकाधिक बिम्ब देकर,
जड़, चेतन, राजा व रंक को,
पावन पदरज देकर.
पूज्य श्री, जल, थल, नभचर पर, परमउपकार किया है,
प्रभु ऋषभदेव से वर्धमान के
युग को साकार किया है.
वाणी, शब्द, ज्ञान न इतना,
गुरुमहिमा लिख पाएं,,
दोऊ कर जोड़े, रोम रोम से,
प्रतिपल शीश नवाएं.
जहाँ विराजे,आशीष दें नित,
हम सदपथ अपनाएं,,
पद चिंन्हो पर चलकर गुरुवर, जीवन सफल बनायें.
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अमृता हॉस्पिटल, फ़रीदाबाद. भोपाल, ललितपुर.
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