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कहानी : जागो, बचाओ... - डोली शाह , असम


 कहानी : 

  जागो, बचाओ...

          कड़ाके की सर्दी थी । पूरी प्रकृति चांदी की अर्क से ढकी पड़ी थी।  दुल्हन सी सजी कलियां  खिलने के लिए तैयार बैठी थी ।

         ठिठुरती कुमहलाती नीलू भी सूरज की लालिमा का बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी। इतने में उसकी नजर पास खड़े  मनमोहक केले की बागान पर पड़ी।मोटी -मोटी ओस के बूंदों से ढका पूरा प्रकृति, चिड़ियो की मधुर ध्वनि  कानों को गुदगुदी करा रही थी। 

  देखते-देखते उसकी नजर  एक अर्ध वर्षीय इंसान जो जोर-शोर से केले की फलों को काट रहा था। नीलू भी टक -टकी  लगाए उसे देखती रही , इतने में--

" अरे भैया ,  सारे काट  लोगे क्या?"

 " हां मैडम, बिक जाएगा त्योहारों का मौसम जो है अभी।"

" हां मूल्य भी अच्छी मिलेगी "

नीलू  देखते देखते वह खुद को रोक न पाई और बोली -- भैया आप फल काट लीजिए, मगर वृक्षों को तो छोड़ दीजिए!"

" अरे मैडम ये दोबारा फल तो देंगे नहीं, तो क्या फायदा रखकर !" और मुझे तो मालिक ने कहा है ,

 (नीलू सोच में पड़ गयी)और बोली--

 मानती हूं फल नहीं देंगे लेकिन बड़े-बड़े पत्ते ठंडी हवा तो दे रहे हैं। किसी के यहां यदि पूजन समारोह हुआ तो यह पेड़ काम आ जाएंगे । वैसे भी तो हरे वृक्षों को काटना शास्त्र में वर्जित है।"

 "अरे मैडम, यह सब कौन सोचता है, पुरानी को काटेंगे, तभी तो खाली जगह होगा।"

   (गुस्से में बुदबुदाते स्वर में अंदर जाकर)-- पता है जी, कोई व्यापारी आकर केले के फलों को काट रहा है, साथ ही सारे वृक्षों को भी!   आप मना कीजिए ना! मैंने मना किया, पर वह कहता है मालिक ने कहा है! "

" फिर काटने दो ना, अपना तो है नहीं आखिर! "

" आप ना जी! रुकिए मैं समर को फोन लगाती हूं"।"

 हेलो समर, कैसे हो")"

" मैं ठीक हूं भाभी, लेकिन आज सुबह-सुबह मुझे कैसे याद किया आपने...

 कोई काम था क्या?"

" हां, तुम्हारे  बागान में कोई व्यापारी केले के फल काट  रहा है ।"

 हां भाभी, उसे मैंने ही भेजा था। समर ने कहा।

- ठीक है, लेकिन वृक्षों को क्यों कटवा रहे हो!" 

" भाभी , आखिर वह दोबारा फल तो देंगे नहीं ! "व्यापारी ने कहा।

 "  अरे, यह तुम क्या बोल रहे हो!  यह वृक्ष फल नहीं देंगे ,तो क्या काट कर फेंक दोगे?  इसीलिए तो यहां बड़े-बूढे  जब काम नहीं  कर पाते तो उन्हें वृद्ध आश्रम....

    समर सोच में पड़ गया।  दो पल मौन ही रहा,

  माना की वह फल नहीं दे रहे हैं तो बाकी आवश्यकताएं तो पूरी कर रहा हैं , नीलू ने समझाया।

    "अरे नीलू चुप भी करो, नरेश ने गुर्राते हुए कहा । उनका बगीचा है ,उसकी मर्जी है ।वह जो भी करें।" 

   दफ्तर को निकलते हुए समर नरेश के घर पहुंचा। अरे समर, आओ बेटा ,नरेश ने कहा ।

नीलू की तरफ इशारा करते हुए ,"

क्या हुआ भाभी ? "नीलू की चुप्पी देख, नरेश ने कहा।   तुम्हारी भाभी कह रही थी, जब नए वृक्ष लगाओ तब काटना, अभी से  क्यों काट रहे हो ।"

  हां, भाभी की बात में दम तो है, लेकिन एक साथ साफ भी करवा दो, तो झंझट और पैसे दोनों की बचत होती है। दादाजी भी तो हमेशा फलों क साथ वृक्षों को भी  कटवाते  थे।

   गुस्से में लाल पीला नीलू ने झुंझलाते हुए कहा-- औरों में तो हम भी आते हैं। तुम्हारे दादाजी के वक्त प्रकृतिक हवा बहुत ही शुद्ध थी,और हम भी तो इसी समाज में  आते हैं। हम नहीं काटेंगे तो हमें देखकर और लोग भी नहीं .....!

  हंसो मत ,अच्छा नहीं लगता। आखिर यह वृक्ष हमारी जान है। इन वृक्षों की कटाई के कारण ही देश  विध्वंस होता जा रहा है,हर दिन सैकड़ों की जाने जा रही है। पूरी  प्रकृति  बीमारियों से जकड़ती जा रही है ।आखिर हम युवाओं से ही तो पहला एक्सपेक्ट करेंगे....

 हां भाभी, आपकी बात बिल्कुल शौ टके  की है। ठीक है फिर जिस दिन नए वृक्ष  लगाओगे, उस दिन काट देना। तब तक तो वह  खुद ही सूख जाएंगे। 

   " हां, जो हुकुम भाभी.... , अरे भैया, आप सिर्फ फल काट लीजिये वृक्षों को हम बाद में साफ करवा लेंगे, समर ने व्यापारी को कहा ।"

नए वृक्ष लगाने की में वैसे भी अभी दो महीने है , थोड़ी बरसात होगी तभी नए वृक्ष लगाऊंगा। 

" अभी से तुम..." (नीलू ने मुस्कुरा कर कहा ) 

     नीलू तुम सही में पीछे पड़ जाती हो। हां जी, प्रकृति के साथ खेलना मुझे पसंद नहीं ....

     नीलू की बात सुन तीनों के साथ  व्यापारी भी   मुस्कुरा दिया.....

 -  डोली शाह

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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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