काव्य :
ग़ज़ल
इक तमाशा ज़रा बड़ा देखा।
बाद मुद्दत के आइना देखा।
हर तरफ बस सनम नज़र आया,
इक अजब आज माजरा देखा।
उंगलियाँ और पर नहीं उठतीं,
जब से उसने है आइना देखा।
जा के देखी है सीकरी मंज़िल,
ताज देखा है आगरा देखा।
और मज़बूत हो गया ईमां,
जब से झूठों का दबदबा देखा।
- हमीद कानपुरी,कानपुर
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