प्रयागराज में पर हुई दुर्घटना चिंतन और विचार विमर्श का विषय
प्रयागराज में मौनी अमावस्या पर हुई दुर्घटना चिंतन और विचार विमर्श का विषय है । वैचारिक मंथन से ही समस्या का समाधान निकलेगा । हर दृष्टिकोण से इस पर विचार किया जाना आव्यक हे ।144वर्षों बाद पड़ रहे इस दिव्य और भव्य महाकुंभ का हर व्यक्ति हिस्सा बनकर पुण्य कमाना चाहता है ।
*मुद मंगलमय संत समाजू।
जिमि जग जंगम तीरथराजू *।।
मौनी अमावस्या का स्नान
धर्म श्रद्धालु जनता की आस्था और श्रद्धा के वशीभूत हो धैर्य और संयम को छोड़ अनुशासन हीन होकर जब व्यवस्था द्वारा निर्धारित नियम तोड़कर चलती है तो वह बेकाबू भीड़ ही भेंड़चाल हो जाती है ऐसे समय शासन -प्रशासन कोई भी हो उसे रोक नहीपाता । आसुरी शक्तियां जागकर उसका लाभ उठाती हैं । ऐसी विकट परिस्थिति से निबटने के लिये यदि विपक्ष भी सत्ता पक्ष के साथ खड़ा होकर उसे सहयोग देता तो स्थिति इतनी गंभीर नहीं होती । लेकिन जिनका उद्देश्य ही सनातन हिन्दू संस्कृति कि विरोध करना हो वह ऐसे समयका लाभ उठाकर* ऐन कैन प्रकारेण*इस महाकुंभ मेले को ही हथियार बनाकर सत्ता हथियाना चाहते उनके मुखौटे सामने हें । यह जनता की भीड़ से भेंड़चाल का दोष नहीं वरन उसे माध्यम बनाकर उनके मध्य घुसे उन षड़यंत्रकारी तत्वों का काम था जिन्होंने आगे बढ़कर लोगों को धकियाते हुये बैरिकेड तोड़ दिये ।जो जमीन पर गिरे वह उठ ही न सके उन्हें कुचल कर आगे बढ़ गये ।
भीड़ में लोग गिरने पर अपनों के ही पैरों तलें रौंद दिये जाते हैं । इसलिये भीड़ से बचें । जान है तो जहान है ।मन चंगा तो कठौती में गंगा । तन की शुचिता से अधिक मन की शुचिता आवश्यक । ऐसी विकट परिस्थिति से उबरने के लिये जिस समय विपक्ष आरोप प्रत्यारोप लगा कर योगी जी से इस्तीफा मांग रहा था । साधू संत समाज ने उनकी रक्षा करते हुये जनहित में सभी अखाड़े और चारों महामंडलेश्वर ने मिल कर जो निर्णय लिया वह स्वागत योग्य था ।
इस मौनी अमावस्या की गणना ज्योतिषीय खगोलीय ग्रह पिण्ड नक्षत्रों द्वारा निर्मित मुहूर्त पर थी ।जिसमै वह अपनी शक्ति प्रदर्शन के साथ शाही स्नान की वर्षों से तैयारी कर प्रतीक्षा कर रहे थे उसको स्थगित कर शाही स्नान बैंड बाजों के साथ शोभायात्रा निकालने के स्थान पर स्वत:ही दिवंगत आत्माओं की शांति के लिये श्रद्धांजलि अर्पित करे हुये सामान्य स्नान करेंगे। नमन है हमारे तपस्वी साधूसंत समाज को जो जनहित में कभी अपना हित नहीं देखते इसीलिए वह महान है । यही तो समुद्र मंथन है जो देवताओं और असुरों के द्वारा समुद्र मंथन से उत्पन्न हुये कालकूट विष को शिव को सृष्टि की रक्षा के लिये पीनि पड़ा था ।आज इतने बड़े महाकुम्भ में जहां 4o करोड़ श्रद्धालु स्नान करें उसके लिये इतनी बड़ी व्यवस्था कोई साधारण कार्य नहीं । यह मंथन अंतरिक्ष मे हो या पृथ्वु पर कही पर भी मंथन के अंत में ही अमृत निकलता है । मंथन से प्रथम निकले हुये विष को शिव ने पी लिया यही शिवत्व है जिसे धारण करने की क्षमता हर किसी में नही । हमारी उदात्त सनातन वैदिक संस्कृति केवल अपने लिये नहीं वरन सबके कल्याण के लिये महर्षियों ने जो कि अपने समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक थे शिवत्व को धारण करते हुये वेदों की रचना की ।*सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे सन्तु निरामया*।।
प्रयागराज सत्य और धर्म की भूमि है जिस पर असत्य और अधर्म ने अधिकार करना चाहा किंतु कुछ भी हो अंत में अन्याय और अधर्म पर विजय न्याय और सत्य की ही होती है यही धर्म है ।
- उषा सक्सेना-मुंबई