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काव्य : अमराई / बसंत - डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल


 काव्य : 

अमराई / बसंत


अमराई की यादें,

स्पंदित कर जाती हैं मेरा

तन और मन,

घूमने लगते हैं विचार,

ओढ़ कर, पोशाक *बसंत* की,

किशोर उम्र गुनगुनाने लगती है,

दृश्य  चित्रफलक से दिखने लगते हैं,

चमक उठते हैं मेरे नयन,

 ज्यों विचरता हो कोई

वन,उपवन,आम के बाग,

देखता हो,शाख आमो की ,

लदी हुई, आम्र पुष्प मंजरो से झुक झुक जाती हुई,

सुगंधित पुरवा पवन मध्य,

लहलाते पीले सरसों फूलो के खेत बीच,

मेरा मन ,टहलने लगता है, बौराता सा है,*किशोर ब्रज*,

सोचता है,कुछ दिनों बाद

चुपचाप,बौर के फूलों को गिराकर

अमिया आ बैठेगी,इन आम की डालियों पर,

लोग झूले झूलेंगे,पेड़ की डालों पर रस्सिया बांधकर,

ये बसन्त तन और मन में,

हर वर्ष ,

यों ही प्रवेश कर जाता है,

अमराई के बहाने,

वियोगिनी कहने ही वाली है,

 झूले पड़े तुम चले आओ,

बसन्त और फाग,

सताने लगे हैं मिलकर, मुझे


 - डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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