सरकार की सड़क पर इंटरसेप्टर के जरिए कमाई
इंटरसेप्टर आखिर किस बला का नाम है
आज भोपाल जाते समय मुझ जैसे कार चलने वाले सहित कई लोग इंटरसेप्टर के फंदे में फंसे और एक एक हज़ार रुपए देकर छूटे।
भोपाल नर्मदापुरम से भोपाल की ओर जाने के मार्ग पर आशिमा मॉल के सामने पुलिस बल तैनात था जो मुझ जैसे कार चालकों को रोकते हुए उनके चालान काट रहा था। चालान काटने के वैध कारण को दिखाने के लिए इंटरसेप्टर में लगे कैमरे को मुझे भी दिखाया गया। मैंने दूरबीन लगे कैमरे की बैक स्क्रीन पर अपनी कार के अगले हिस्से को दिखा जिसमें मेरी कार का नंबर स्पष्ट दिखाई दिया साथ ही ऊपर कार की स्पीड 73 किमी प्रति घंटे का डिस्प्ले भी देखा। आधुनिकता के इस उपकरण वाली कार को मैंने इटारसी के केंद्रीय विद्यालय सीपीई में पहले देखा हुआ था इसलिए विश्वास था कि मेरी स्पीड 73 किमी प्रति घंटा रही होगी। ये वो अवसर था जब पुलिस के साथ मैंने खुद यातायात जागरूकता की कार्यशाला एन सी सी की बालिकाओं के लिए की थी।
अब मसला यह है कि इस मार्ग पर जो 60 किमी प्रति घंटा स्पीड लिमिट के बोर्ड लगे हैं वो ज्यादातर धुंधले हो चुके हैं और ऐसी ऊंचाई पर लगे है कि दूर से दिखाई नहीं देते, लेकिन स्पीड आपकी अगर ज्यादा है तो चालान तो कटेगा ही। दूसरी बात यह कि पुलिस को अब इंटरसेप्टर के जरिए पकड़ना और पकड़े जाने के कारण को बताना आसान और प्रामाणिक हो गया है।
सबसे बड़ी बात यह है कि आपको एक या दो बार की चेतावनी देकर छोड़ देने का प्रावधान भी नहीं रखा गया है कि चालक अगली बार यह गलती न करे। यानि बिना चेतावनी और बिना सही संकेत पट्टिका के इस तरह से चालान ठोकना तो लूट ही हुई। लूट इसलिए भी क्योंकि चालान की राशि भी इतनी बड़ी है कि उससे आपका परिवार के लिए एक सप्ताह का राशन खरीदा जा सकता है।
चालान की राशि एक हज़ार रुपए है जिसे उसी समय देना पड़ेगा, कैश नहीं तो डिजिटल देना पड़ेगा।
कानून तोड़ने पर जुर्माना कोई गलत नहीं है लेकिन ऐसे थोपना तो ठीक नहीं है ना।
आपकी क्या राय है बताना चाहें तो अपनी सोशल मीडिया पर इस स्टोरी को अपनी राय या कमेंट के साथ शेयर कर देना। ताकि जब भी कोई किसी शहर में प्रवेश करे तो स्पीड 60 किमी से कम ही रखे।
- भारत भूषण आर गांधी
स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता
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