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ज्ञानपीठ पुरस्कार 2025 से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल साहित्य की अनमोल धरोहर हैं - -पद्मा मिश्रा ,जमशेदपुर


 

ज्ञानपीठ पुरस्कार 2025  से सम्मानित विनोद कुमार शुक्ल साहित्य की अनमोल धरोहर हैं      

       हिदी साहित्य के विशाल संसार में कोई एक नाम,कोई एक कृति जब बार बार आपको झकझोरने लगे ,आपकी संवेदनाएं झंकृत हो उस साहित्यिक प्रवाह में गंगा की तरह बहती चली जाए तो निश्चय ही वह नाम कालजयी हो जाता  है।ऐसा ही एक नाम जिसे आज 2025 का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया है ,वह हैं साहित्य मनीषी आदरणीय विनोद कुमार शुक्ल।उनका  व्यक्तित्व जितना सरल सहज ,कृतित्व भी गहन गांभीर्य, ज्वलंत, भावप्रवण संवेदनशीलता जो एकबारगी आपको कभी चौंकाती है,कभी झकझोरती है तो कभी भावनाओ के प्रवाह में बहा ले जाती है।

विनोद कुमार शुक्ल हिन्दी भाषा के एक साहित्यकार हैं. उन्होंने उपन्यास एवं कविता विधाओं में साहित्य सृजन किया है। विनोद कुमार शुक्ल  का जन्म 1 जनवरी 1937.में हुआ था। हिंदी भाषा के वरिष्ठ साहित्यकार शुक्ल  जी ने उपन्यास एवं कविता,कथा सभी  विधाओं में साहित्य सृजन किया है। उनका पहला कविता संग्रह 1971 में  जय हिन्द नाम से प्रकाशित हुआ। 1979 में नौकर की कमीज़ नाम से उनका उपन्यास चर्चित रहा था।

 विनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास 'दीवार में एक खिड़की रहती थी' में भारतीय निम्न-मध्यवर्गीय जीवन का यथार्थ चित्रण है। यह कहानी किसी महान घटना या संदेश की तलाश नहीं करती, बल्कि आम जिंदगी को  अत्यंत सहजता और  सादगी से प्रस्तुत करती है।  यह. उपन्यास, विनोद कुमार शुक्ल की रचना है. यह साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास है.तथा निम्न-मध्यवर्गीय जीवन की तस्वीर खींचता है।इस उपन्यास की विशेषता यह है कि इसमें खलनायक नहीं हैं, बल्कि मुख्य पात्रों के जीवन की सादगी, उनकी निरीहता, उनके रहने-आने, जीवन-यापन के ,संघर्षों को.अत्यंत गहराई से अनुभवों की छाया मे लिखा गया.है।

इसमें  दाम्पत्य जीवन , परिवार, आस-पड़ोस, काम करने की जगह, स्नेहिल ग़ैर-संबंधियों के साथ रिश्तों में  एक अटूट  आस्था  और  विश्वास की स्थापना की गई है।

इस कृति में प्रकृति  हर जगह भावनात्मक और मानवीय उदभावनाओं  के साथ भी  उपस्थित है।.लेखकों ने इसकी समीक्ष करते हुए  लिखा है-इसमें ऐंद्रिकता, माँसलता, रति और शृंगार के ऐसे चित्र भी दिए गए हैं जो बग़ैर उत्तेजक हुए आत्मा को इस आदिम संबंध के सौंदर्य से समृद्ध कर देते हैं।"

विनोद शुक्ल जी का काव्य संसार बाहरी चकाचौंध, चमक दमक और कृत्रिमता  से कोसों दूर मन ने जैसा अनुभव किया,उसका सही सही यथावत चित्रण ही.है।जो.सीधे मन को.स्पर्श करता है।

उनकी एक कविता जो मुझे बहुत पसंद है,जिसे जितनी बार पढती हूं उस रचना के भाव, अर्थ बदलते.रहते हैं।।

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था

व्यक्ति को मैं नहीं जानता था

हताशा को जानता था

इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया

मैंने हाथ बढ़ाया

मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ

मुझे वह नहीं जानता था

मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था

हम दोनों साथ चले

दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे

साथ चलने को जानते थे।

इस रचनामें कवि का मानवीय दृष्टिकोण उभर कर सामने आता है। जीवन में हताशा और निराशा के बीच उम्मीद की एक स्वर्णिम किरण की तरह है यह कविता।

एक और कविता जिसे साहित्य जगत में अत्यधिक प्रशंसा और सराहना मिली तथा जिसे आज भी लोग पढना चाहते हैं और याद करते.हैं वह है--

जो मेरे घर कभी नहीं आयेंगे

मै उनसे मिलने उनके पास जाऊंगा

एक उफनती नदी कभी मेरे पास नहीं आयेगी ,

नदी किनारे जाऊँगा,कुछ तैरूँगा,और डूब जाऊँगा।

 ज्ञानपीठ सम्मान एक विशिष्ट सम्मान है जो साहित्य को उच्चता का शीर्ष प्रदान करता है.और साहित्य गौरवान्वित होता है।ज्ञानपीठ पुरस्कार मिलने पर विनोद कुमार शुक्ल ने कहा-""मुझे लिखना बहुत था बहुत कम लिख पाया, मैंने देखा बहुत, सुना भी मैंने बहुत, महसूस भी किया बहुत, लेकिन लिखने में थोड़ा ही लिखा. कितना कुछ लिखना बाकी है.. इस बचे हुए को मैं लिख लेता अपने बचे होने तक:"।

उनके बचपन के.मित्र, साहित्यकार कनक तिवारी जी ने कहा -*कविता से बड़ा कवि(कविता से विलग इन्सान,विनोद जी कविता में शब्दों की गांठ बांध देते हैं। उसे खोलो तो शब्दार्थ और भावार्थ की फुलझड़ियां छूटती हैं। हैं।

उनके मित्रौः का.मानना है कि  उनकी आंखों में पता नहीं क्या था जिस अज्ञात को हम कच्ची उम्र में कैसे समझ पाते।"

बहरहाल ज्ञानपीठ का यश और महत्व वह इस कवि के सम्मान से ज़्यादा ज्ञानपीठ का सम्मान है।यह पूरा साहित्य जगत मानता है

 विनोद कुमार शुक्ल आदिवासी बोधमयता के एक महान कवि हैं। 

साहित्य के इस.गौरव शाली सम्मान से सम्मानित होने पर आदरणीय विनोद शुक्ल जी को.हार्दिक बधाई और अशेष शुभ कामनाएं।


- पद्मा मिश्रा.जमशेदपुर 

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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