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राजस्थान लोक नृत्य के रंग - मुकेश तिवारी


 राजस्थान लोक नृत्य के रंग 

    -  मुकेश तिवारी 

वैसे तो हिंदुस्तान के सभी प्रदेशों की कला संस्कृति संस्कृति नृत्य संगीत से भरपूर है ,लेकिन राजस्थान को इस क्षेत्र का अग्रणी प्रदेश कहना ही उचित होगा ,मेले  उत्सवों की बहुतायत तो यहां है ही ऐसा लगता है कि यहां के रहवासी रंग-बिरंगे परिधान ,संगीत और मनमोहक नृत्यों में डूबने का अवसर खोजते रहते हैं, अन्य राज्यों की अपेक्षा राजस्थान में नृत्यों की भी भरमार है ,उत्साह का संचार करते ये लुभावने नृत्य देखने वालों का वरवस ही मन मोह लेते हैं , राजस्थान का हर नृत्य प्रत्येक नृत्य किसी विशिष्ट मौके से जुड़ा हुआ होता है,

कुछ मुख्य नृत्य है--- घूमर, गैर ,डांडिया ,तेराताल, चरी, कच्ची घोड़ी कालबोलिया ,भवई भोपा - भोपी आदि,

घूमर --राजस्थान का सबसे ज्यादा लोकप्रिय नृत्य घूमर महिलाओं द्वारा किया जाता है ,जिसमें जितनी अधिक महिलाएं होती हैं यह उतना ही मोहक लगता है, गोलाई में दायींओर अग्रसर होता है यह नृत्य आठ मात्रा की कहरवा तल  पर धीरे-धीरे आगे बढ़ता है ,गोलाई में घूमने के साथ-साथ महिलाएं अपनी जगह पर भी चक्कर लगाती हैं कभी दायी  ओर तो कभी बाई ओर से, ऐसे घूमते हुए उनके घेरदार रंग-बिरंगे घागरे फैल से जाते हैं जो बहुत ही आकर्षक दिखाई देते हैं ,धीरे-धीरे संगीत की गति तेज होने के साथ-साथ महिलाओं के घूमने की गति भी बढ़ती जाती है, खासतौर से गणगौर और अन्य पर्वों पर किए जाने वाले इस नृत्य के साथी संगीत वाद्य है-- हारमोनियम ,ढोलक ,सारंगी ,तबला और मंजीरे ,

गैर --  होली के मौके पर किए जाने वाला यह नृत्य सिर्फ पुरुषों द्वारा किया जाता है ,मेवाड़ क्षेत्र में उक्त नृत्य  काफी लोकप्रिय है, घूमर नृत्य से जुगलबंदी का यह घूमर गैर के रूप में भी प्रसिद्ध हुआ है , नृर्तक अपने हाथों में दो डांडिया लेकर गोलाकार  में खड़े हो जाते हैं, संगीत के साथ घूमते हुए वे  सर्वप्रथम अपने दायी ओर के साथी से डांडिया बजाते हैं, फिर आपस में अपनी  ही, फिर घूम कर बायी  ओर वाले से फिर अपनी ... और इसी तरह ये सिलसिला चलता रहता है,, साथ ही, वे गोलाई में भी घूमते रहते हैं जिसकी गति धीरे-धीरे तेज होती जाती है, विशेषता समाप्ति की ओर

डांडिया -- उक्त नृत्य भी पुरुषों  द्वारा होली के मौके पर किया जाता है, स्त्रियां इस दौरान शौर्य और राजपूतों की वीर गाथाएं गाती है ,सभी नृर्तक राजपूती  योद्धा की वेशभूषा में होते हैं-- लंबा घेरदार जामा पहना हुए उनके दोनों हाथों में रहती है, एक -एक डांडिया, गोलाई में खड़े हो वे अपने दाएं हाथ की डांडिया दायीं और खड़े साथी की डांडिया से बजाते हैं और बाएं हाथ की बायीं  ओर खड़े साथी से, एक बार अद्वऺ  या पूर्ण घूम कर यह चक्र फिर दोहराया जाता है,

तेराताल --यह नृत्य की बारीकी और महारथ की परीक्षा ही है, एक या अधिक नर्तकियां हाथों में धागे से बंधे मंजीरे पड़कर शरीर के अन्य भागों पर बंधे  मजीरों को बजाती है, तेराताल नृत्य में अधिकाधिक आकर्षण उत्पन्न करने के लिए वे कभी अपने मुंह में तलवार पकड़ लेती हैं तो कभी सिर पर दीप या मटके रख लेती है, कुछ भी हो मंजीरे बिना रुके बजते रहते हैं, साथ में तंदूरा, खड़ताल और मंजीरे की ताल पर योद्धा गुरु रामदेव की प्रशंसा में गीत गाए जाते हैं

कालबेलिया ---कालबेलिया जाति की महिलाओं द्वारा किए जाने वाला यह नृत्य सपेरा नृत्य भी कहलाता है, काले रंग की लहंगा ओढ़नी पहनकर जब नृत्यांगना सांप की तरह बल कर नृत्य करती है तो दर्शक जैसे सम्मोहित से रह जाते हैं, जयपुर की गुलाबी इस नृत्य में पारंगत है और देश-विदेश में इसके लिए काफी लोकप्रिय भी है,

भवई---  उदयपुर के जाट नागाजी द्वारा बनाई भवई जाति का यह प्रमुख नृत्य सामाजिक पहलुओं पर नृत्य नाटिका के रूप में किया जाता है, सटीक व्यंग्य इसकी खासियत है,

चरी --यहां नृत्य मटकों  और जलते दीपों का नृत्य है ,सिर पर पांच -सात मटके संतुलित कर नर्तकियां  गोलाकार में खड़े हो, बहुत ही लुभावना नृत्य करती है मेले त्योहारों आदि के मौकों  पर यह नृत्य कच्ची घोड़ी के साथ किया जाता है, 

भवई---

कच्ची घोड़ी ---समुचे राजस्थान और खासकर जोधपुर और बीकानेर में प्रचलित यह नृत्य वर्तमान समय में भी काफी लोकप्रिय है, लकड़ी और कागज से बनी सुंदर घोड़ियां और उन में सवार राजपूती परिधान में सजे नर्तक , साथ में होता है ढोल, झांझर और तसली का संगीत,

भोपा-भोपी---यह एक युवक और एक युवती या ऐसे अनेक जोड़ों का नृत्य है, खासतौर से छेड़छाड़ करने और रुठने -मनाने के इस नृत्य का मकसद दर्शकों का मनोरंजन ही है,

इन सबसे सबके अतिरिक्त और भी अनेक नृत्य है जो उल्लेखनीय है जैसे कमल नृत्य ,पनिहारी नृत्य, मयूर नृत्य ,चकरी नृत्य,जसनाथी साधकों द्वारा जलते अंगारों पर अग्नि नृत्य ,बोतल, तलवार या टूटे कांच पर नृत्य आदि ,इन सबकी लोकप्रियता इस बात का प्रतीक है कि चाहे आधुनिकीकरण  कितनी भी आंधी आए हमारी स्वर्णिम  संस्कृति का सौंदर्य अपने लोकाधार  पर मजबूती के साथ हमेशा टिका रहेगा,

लेखक के विषय में -मध्य प्रदेश शासन से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं ।

ईमेल - tiwarimk2014@gmail.com 

मोबाइल नंबर 8878172777

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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