काव्य :
'मुकद्दर'
लिखा जो भी मुकद्दर में उसे हमने भुनाया है।
किसी पर रोष क्या करना इसे हमने लिखाया है।
किये थे कर्म जो हमने उन्हीं का फल बनी किस्मत,
मिले हमको सभी जो फल उन्हें हमने उगाया है।
करेंगे आज हम जो भी उसी को कल भुनायेंगे,
कहेंगे फिर जगत वाले अजब सौभाग्य पाया है।
बिना शुभ कार्य के भी हम यहां जो पा रहे सोना,
असल में फल हमारा वो सभी पिछला बकाया है।
हमारे भाग में जो भी हमें तकलीफ हैं मिलती,
सभी हैं कर्म फल पिछले जिन्हें हमने सजाया है।
किये परहित यहां जितने दिये पर दुख यहां जितने, उन्हीं का लौट कर आया हमारा फल सवाया है।
हमें मिलता वही 'दीपक' दिया था दान जो हमने, खुशी या त्रास दे विधि ने हमारा ऋण चुकाया है।
- रजनीश मिश्र 'दीपक' खुटार शाहजहाँपुर उप्र
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