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काव्य :-सूरज बेचें सूप' - भीमराव 'जीवन' बैतूल


 काव्य : 

नवगीत 

सूरज बेचें सूप'


तोड़ रहा रोटी का साहस, चटक हटीला धूप।

महँगाई  की  छतरी  ताने, सूरज  बेचें  सूप।। 


अमराई  की  छाँव  ढूँढते, छाले  पहने  पाँव।

दूर बहुत है थकी हवा का, निर्झर वाला गाँव।। 

मुख पर डाल नकाब व्यथित है,कोमल तन का रूप।।


तान दिया दिनकर ने नभ तक,लू का शिविर अभेद।

व्याकुल साँसें पंखा झल अब, ज्ञापित  करती  खेद।।

तरस  गया  है  बूँद - बूँद  को, ढो  प्यासे  घट  कूप।। 


आसमान को ताक रहा है, जंगल का वैराग्य। 

प्यासे अधरों के जागेंगे, कब तक रूठे भाग्य।। 

दे फुहार कब मेघ नयन को, देंगे दृश्य अनूप।। 


एसी कूलर के हंसों ने, भेज दिया फरमान।

ठीक दोपहर में जाँचेंगे, रोटी  की  मुस्कान।। 

ऊँघ रहा पर ठंडा पीकर, इस मौसम का भूप।।


- भीमराव 'जीवन' बैतूल

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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