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सरोकार : मध्यप्रदेश में मजदूरों की मनरेगा योजना के हाल बेहाल -- डॉ. चन्दर सोनाने, उज्जैन


सरोकार : मध्यप्रदेश में मजदूरों की मनरेगा योजना के हाल बेहाल

99 प्रतिशत मजदूर परिवारों को नहीं मिला 100 दिन काम

-  डॉ. चन्दर सोनाने, उज्जैन

      

   महात्मा गाँधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की मध्यप्रदेश में स्थिति अत्यन्त खराब है। इस योजना में गरीब मजदूर परिवारों को केन्द्र सरकार द्वारा 100 दिन काम की गारंटी दी गई। वर्ष 2024-25 में मध्यप्रदेश में 93.50 लाख परिवारों ने मनरेगा योजना के अन्तर्गत रोजगार प्राप्त करने के लिए अपना पंजीयन कराया था। सालभर में इनमें से केवल 71,658 परिवार ही ऐसे हैं, जिन्हें 100 दिन या इससे अधिक का रोजगार मिला। यानी केवल 0.76 प्रतिशत परिवारों को ही रोजगार मिला। इसे 1 प्रतिशत भी मान लिया जाए तो बाकी 99 प्रतिशत मजदूर परिवार ऐसे हैं, जिन्हें या तो बहुत कम   काम मिला या फिर उन्हें काम अधूरा छोड़ना पड़ा।

उल्लेखनीय है कि इस योजना में मध्यप्रदेश में वर्ष 2024-25 के लिए 3 हजार 500 करोड़ का बजट प्रावधान रखा गया था। इस योजना में 20 करोड़ मानव दिवस के सृजन का लक्ष्य रखा गया था। मजदूरों के लिए वरदान मानी जाने वाली मनरेगा योजना में प्रदेश के पंजीकृत 99 प्रतिशत परिवारों को इसका पूरा लाभ नहीं मिल पाया। ये आँकड़े अत्यन्त चौंकाने वाले और दुखद है। ये आँकड़े यह भी बताते हैं कि मध्यप्रदेश सरकार और संबंधित अमला मजदूरों को 100 दिन रोजगार की गांरटी देने वाली इस योजना मनरेगा के प्रति गंभीर कतय नहीं है।

मनरेगा योजना की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसमे पंजीकृत परिवारों को साल में 100 दिन काम देने की गारंटी दी गई है। मध्यप्रदेश में कुल 52 जिले हैं। हम इन समस्त जिलों की बात नहीं करते हैं। सबसे कम परिवारों को 100 दिन काम देने वाले 5 जिलों की हालत इस प्रकार है - भिंड जिले में केवल 1 परिवार को साल भर में 100 दिन का काम मिल पाया। निवाड़ी जिले में 39 परिवारों को 100 दिन काम मिला। इंदौर जिले में 96 परिवारों को साल भर में 100 दिन काम मिला। शाजापुर जिले में 103 परिवारों को ही यह नसीब हुआ और दतिया जिले में मात्र 117 परिवारों को ही 100 दिन को काम मिल सका। 

मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा परिवारों को 100 दिन काम देने वाले जिले भी है। इसकी स्थिति इस प्रकार है- डिंडोरी जिले में 6,357 परिवारों को रोजगार मिला। मंडला जिले में 6,092 परिवारों को काम दिया गया। बालाघाट जिले में 5,761 परिवारों को काम मिला। अनूपपुर जिले में 5,095 परिवारों को काम मिला और दमोह जिले में 5,037 परिवारों को साल भर में 100 दिनों का काम मिला। प्रदेश के शेष जिलों की स्थिति भी कोई संतोषजनक नहीं है। 

मनरेगा योजना में मध्यप्रदेश में मजदूरों को रोजगार नहीं मिल पाने की स्थिति तब है, जब प्रदेश में महिला श्रमिकों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। बालाघाट जिले में 2,52,527 महिला श्रमिक है। यह संख्या प्रदेश में एक जिले में सर्वाधिक है। मंडला में 2,03,061 महिला श्रमिक है, छिंदवाड़ा जिले में 1,94,853 महिला श्रमिक है, सिवनी जिले में 1,94,608 और डिंडोरी जिले में 1,69,086 महिला मजदूर है।

मनरेगा के ताजे आँकड़ों से एक और चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 80 साल से अधिक उम्र वाले श्रमिकों की संख्या 11,698 हैं। यह अत्यन्त दुखद है कि 80 साल से अधिक उम्र के गरीब मजदूरों को भी काम की तलाश हैं। इनमें भी सबसे अधिक राजगढ़ जिले में 1386 मजदूर हैं। वहीं सबसे कम संख्या 11 भिंड जिले में हैं। उल्लेखनीय यह भी है कि मनरेगा में 80 साल से अधिक उम्र वाले 30,99,726 श्रमिकों ने अपना पंजीयन करवाया हैं। यहीं नहीं प्रदेश में कुल 94.09 लाख जॉब कार्ड जारी किए गए हैं। इनमें से 58.89 लाख सक्रिय हैं। यानी 35.2 लाख जॉब कार्ड निष्क्रिय हैं। यह भी जाँच का विषय है। 

                        कुल जॉब कार्ड में से 5 लाख से अधिक जॉब कार्ड ऐसे हैं, जिनमें पिछले 2 वर्षों से किसी भी तरह की मजदूरी दर्ज नहीं हुई हैं। एक और चौंकाने वाले आँकड़े मिले हैं। वर्ष 2024-25 में प्रदेश की एक हजार से अधिक ग्राम पंचायत ऐसी हैं, जहाँ शून्य कार्य दिवस दर्ज किए गए। अर्थात् इन ग्राम पंचायतों में मजदूरों के लिए कोई भी योजना शुरू नहीं हुई और न हीं किसी को रोजगार मिला। कई जिलों में मजदूरी को भुगतान औसतन 15 से 20 दिन की देरी से होना भी पाया गया। मनरेगा योजना के ताजे आँकड़ें यह भी बताते हैं कि गाँवों में गरीब मजदूरों के क्या हाल हैं ? वे किस हालात में जी रहे   हैं ? आज उनके लिए कुछ करने की सख्त आवश्यकता हैं।

प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एक ऊर्जावन मुख्यमंत्री है। उन्हें चाहिए कि वे देखें कि प्रदेश की मनरेगा योजना की हाल-बेहाल स्थिति क्यों हुई ? इसकी पड़ताल करें। इसके साथ ही जिन जिलों में साल में सबसे कम परिवारों को रोजगार मिला, उन जिले के जिम्मेदार अधिकारियों और कर्मचारियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई करें, जिससे अन्य जिलों के अधिकारी और कर्मचारी में इसका संदेश जाए और वे इससे कुछ सीख सके। इससे होगा यह कि गाँव के गरीब मजदूरों को रोजगार मिल सकेगा, जिससे वे अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकेंगे। 


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देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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