कला मंदिर की पावस गोष्ठी संपन्न
भोपाल । विश्व संवाद केंद्र शिवाजी नगर में अखिल भारतीय कलामंदिर के तत्वाधान में नवाचार पावस गोष्ठी का आयोजन राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉक्टर गौरी शंकर गौरीश की अध्यक्षता में किया गया। जिसमे गोष्ठी उद्घाटन उपरांत पाँच रचनाकारों को रचना पाठ हेतु आमंत्रित किया गया। डॉक्टर गौरीश ने “नीलगगन पर काली छाया” गीत सुनाया और नवाचार की प्रक्रिया पर प्रकाश डाला।
उन्होंने दिवंगत साहित्यकार सुरेश टांतेड़ और डॉक्टर अर्जुन दास खत्री की उपलब्धियों पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सरस और प्रभावी संचालन सीमा शिवहरे ने किया।
प्रथम समूह में सरोज सोनी, जया आर्या, अशोक धमेनिया, रेणु श्रीवास्तव, डॉक्टर शरद यायावर ने मंच ग्रहण किया। सरोज सोनी ने बदरिया बरसो न मेरे देश, रेणु श्रीवास्तव ने “मेघ बरसे नेह के जब भी यहाँ”, डॉक्टर शरद यायावर ने “तुम पावस की प्रथम बूँद सी मन के तपते ताम्रपत्र को छूकर विस्मय करती हो, जया आर्या ने “अरे बदरा तुम कहाँ चल दिए, आँख मिचौली क्यों कर रहे, अशोक धमेनिया ने “हरी हरी घास पर मखमली बिछात पर एक बूँद आ गिरी” सुनाई।
दूसरे समूह में गोकुल सोनी, विमल भंडारी, सुनीता केसवानी, आशा कपूर, पुरुषोत्तम साहित्यार्थी को मंच पर सुशोभित किया गया। आशा कपूर ने “वर्षा ऋतुओं की रानी झमाझम कर आए”, गोकुल सोनी ने “पिय पसीना सोना उगले धरती माँ गुण धानी रे”, सुनीता केसवानी ने “काव्य घन बरसे”,
विमल भंडारी ने “कदम कदम पर गहराते बादल कब मुसकाए”, पुरुषोत्तम साहित्यार्थी ने “आई देख पावस ऋतु”, हर्षित मन तृप्त नयन”,
तीसरे समूह में कमल चंद्रा, कैलाश मेश्राम, शिव अवनिन्द्र खरे, शिव कुमार दीवान, बिहारी लाल सोनी को आमंत्रित किया गया। कैलाश मेश्राम ने “प्रेम का विस्तार मन में, उठ रहा है ज्वार तन में”, शिव अवनिन्द्र खरे ने “वर्षा की बूँदों से निचुड़ गया मन”, कमल चंद्रा ने “बूँदों की सरगम, बिहारी लाल सोनी ने “बरखा बहार आई पानी की धार लाई”, शिव कुमार दीवान ने “पावस आते देखिए पानी की भरमार” सुनाई।
चौथे समूह में सीमा खरे, घनश्याम शर्मा, सुरेश पबरा, राम मोहसन चौकसे, कृष्ण कांत श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया। सीमा खरे स्वरागिनी ने “हर बरस सावन का आना प्यार की बौछार नहीं होता”, सुरेश पबरा ने “बड़े वेग से मेघ घिरे हैं, पानी आने वाला है”, राम मोहन चौकसे ने “मौसम का एतबार मत करना, परदेशी से प्यार मत करना”, कृष्ण कांत श्रीवास्तव ने “चुपके चुपके उनको बुलाती हैं घटायें”, घनश्याम शर्मा ने “सजन सोने के दीवाने मुझे सोने नहीं देते” सुनाई।
अंतिम समूह में सीमा शिवहरे, डॉक्टर मीनू पांडे, व्ही के श्रीवास्तव, सुनील दुबे, हरिवल्लभ शर्मा जी को आमंत्रित किया गया। सीमा शिवहरे ने “ बारिशें फिर हुईं पर न आना हुआ, ऐसे झूठे का दिल क्यों दिवाना हुआ, यूँ तो बूँदें भिगोने को बेचने हैं पर अकेले भिगोना जलाना हुआ।”, डॉक्टर मीनू पांडे ने “गगन में छाये काले बादल”, व्ही के श्रीवास्तव ने “गगन में देखो घटा छाई हो”, सुनील दुबे ने “कुछ ही देर में विचलित करती तेरी खुश्बू”, हरिवल्लभ शर्मा ने “सूरज हुआ कठोर”, सुरेश पटवा ने “मेघा छाए मेघा आए प्यासी धरती रस बरसाए”, मंजू पटवा ने डॉक्टर गौरीश के दोहे सुनाए। कार्यकारी अध्यक्ष हरि वल्लभ शर्मा ने ने नवाचार की उपयोगिता पर बात करते हुए साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन किया।
अंत में दिवंगत साहित्यकार सुरेश टांतेड़ और डॉक्टर अर्जुन दास खत्री को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
हरिवल्लभ शर्मा “हरि”
कार्यकारी अध्यक्ष
अखिल भारतीय कला मंदिर भोपाल