[प्रसंगवश – 21 जून: अंतरराष्ट्रीय योग दिवस]
तन से आगे मन, और मन से आगे आत्मा: यही है योग की यात्रा
[सिर्फ शरीर नहीं, विचार भी लचीले हों — तभी पूर्ण होता है योग]
जब मन की गहराइयों में तूफान मच रहा हो, जीवन की राहें धुंध में खोई सी लगें, और आत्मा किसी अनजानी खोज में भटक रही हो—तब एक क्षण ठहरकर, आँखें बंद करके, गहरी साँसों के साथ अपने भीतर उतरने की कला ही योग है। यह वह पवित्र पल है, जहाँ दुनिया का शोर थम जाता है, समय रुक सा जाता है, और केवल तुम और तुम्हारी आत्मा के बीच एक अनमोल संवाद होता है। योग सिर्फ शरीर को मोड़ना नहीं, बल्कि मन को जोड़ना, आत्मा को संवारना और जीवन को एक नई लय देना है। यह वह प्राचीन भारतीय धरोहर है, जो आज विश्व की साँसों में बस चुकी है। हर साल 21 जून को, जब सूरज सबसे लंबे दिन की रोशनी बिखेरता है, पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में एक साथ साँस लेती है—एक ऐसी एकता में, जो न केवल शरीर को स्वस्थ करती है, बल्कि समाज को सशक्त और विश्व को शांतिपूर्ण बनाती है।
2025 की थीम—“योगा फॉर सेल्फ एंड सोसाइटी” (स्वयं और समाज के लिए योग)—एक ऐसा संदेश है, जो व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण को एक सूत्र में पिरोता है। यह थीम हमें बताती है कि जब हम अपने मन को शांत करते हैं, अपने शरीर को संतुलित करते हैं, तो यह शक्ति केवल हमारे भीतर नहीं रुकती; यह लहर बनकर हमारे परिवार, समुदाय और समाज तक पहुँचती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के 2023 के आँकड़ों के अनुसार, विश्वभर में 300 मिलियन से अधिक लोग मानसिक तनाव और अवसाद से जूझ रहे हैं। ऐसे में योग एक ऐसी वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पद्धति है, जो न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य को पुनर्जनन देती है, बल्कि सामाजिक सद्भाव और एकता को भी बढ़ावा देती है। एक जागरूक व्यक्ति ही समाज की नींव को मजबूत करता है, और योग वह औजार है, जो इस जागरूकता को जन्म देता है।
योग भारत की प्राचीन सभ्यता की देन है, जिसके बीज पतंजलि के योगसूत्रों में, वेदों की ऋचाओं में, और उपनिषदों के गहन दर्शन में मिलते हैं। योगसूत्र में कहा गया है, योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः —अर्थात् योग मन की चंचल वृत्तियों को नियंत्रित करने की कला है। यह केवल आसनों या प्राणायाम तक सीमित नहीं, बल्कि अष्टांग योग के आठ अंग—यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि—जीवन को समग्रता में जीने का मार्ग दिखाते हैं। यम के सिद्धांत, जैसे अहिंसा और सत्य, हमें न केवल दूसरों के प्रति संवेदनशील बनाते हैं, बल्कि स्वयं के प्रति भी करुणा सिखाते हैं। आज की दुनिया में, जहाँ तनाव, अवसाद और सामाजिक विभाजन बढ़ रहे हैं, ये सिद्धांत हमें एक बेहतर इंसान और एक बेहतर समाज बनाने की प्रेरणा देते हैं।
आज का युग तकनीक का युग है, लेकिन यह एकाकीपन और तनाव का भी युग है। हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, नियमित योगाभ्यास तनाव हार्मोन कोर्टिसोल को 30% तक कम करता है, नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है, और हृदय रोग व मधुमेह जैसे रोगों के जोखिम को 25% तक घटाता है। लेकिन योग का प्रभाव केवल शारीरिक नहीं है; यह मन और आत्मा को भी संतुलित करता है। जब हम योग करते हैं, तो हम न केवल अपने शरीर को स्वस्थ रखते हैं, बल्कि अपने व्यवहार, विचारों और दृष्टिकोण को भी परिष्कृत करते हैं। यह परिवर्तन व्यक्तिगत स्तर पर शुरू होता है, लेकिन इसका प्रभाव समाज तक फैलता है। उदाहरण के लिए, स्कूलों में योग शिक्षा से बच्चों में एकाग्रता बढ़ती है और तनाव कम होता है। एक अध्ययन के अनुसार, योग करने वाले छात्रों में शैक्षिक प्रदर्शन में 20% सुधार देखा गया। कार्यस्थलों पर योग सत्र कर्मचारियों की उत्पादकता को 15% तक बढ़ाते हैं। यह सामाजिक परिवर्तन की शुरुआत है—एक ऐसी क्रांति, जो न हथियारों से होती है, न शोर से, बल्कि साँसों की गहराई और मौन की शक्ति से।
2014 में, जब भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंतरराष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव रखा, तो इसे रिकॉर्ड 177 देशों का समर्थन मिला। यह केवल एक राजनयिक विजय नहीं थी, बल्कि भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक शक्ति की वैश्विक स्वीकार्यता थी। 21 जून 2015 को, जब पहला योग दिवस मनाया गया, तो दिल्ली के राजपथ पर 35,985 लोगों ने एक साथ योग करके गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया। आज, विश्व के 190 से अधिक देशों में योग दिवस मनाया जाता है। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर से लेकर पेरिस के एफिल टावर तक, सिडनी के ओपेरा हाउस से लेकर टोक्यो के पार्कों तक, लाखों लोग एक साथ योग करते हैं। यह दृश्य केवल सौंदर्यपूर्ण नहीं, बल्कि मानवता की एकता और विश्व शांति का प्रतीक है। जब इतने लोग एक लय में साँस लेते हैं, तो लगता है जैसे धरती खुद ध्यानमग्न हो गई हो।
2025 की थीम—“स्वयं और समाज के लिए योग”—हमें यह भी सिखाती है कि योग समावेशी है। यह न किसी धर्म से बंधा है, न उम्र से, न लिंग से। गर्भवती महिलाओं के लिए प्रीनेटल योग, वरिष्ठ नागरिकों के लिए चेयर योग, और बच्चों के लिए प्ले योग—हर कोई योग को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार अपना सकता है। यह समावेशिता ही योग को एक वैश्विक आंदोलन बनाती है। आज, योग भारत की सॉफ्ट पावर का प्रतीक बन चुका है, जो विश्व को न केवल स्वास्थ्य, बल्कि शांति और सह-अस्तित्व का मार्ग दिखा रहा है।
इस अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर, हमें यह प्रण लेना चाहिए कि योग को केवल एक वार्षिक उत्सव तक सीमित न रखें। सुबह के 10 मिनट का सूर्य नमस्कार, 5 मिनट का प्राणायाम, या 2 मिनट का ध्यान भी हमारे जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है। बच्चों को योग सिखाएँ, ताकि वे तनावमुक्त और जागरूक बनें। बुजुर्गों को प्रेरित करें, ताकि वे स्वस्थ और सक्रिय रहें। और सबसे महत्वपूर्ण, योग के दार्शनिक सिद्धांतों—अहिंसा, सत्य, संयम—को अपने जीवन में उतारें, ताकि हम न केवल स्वयं को, बल्कि अपने आसपास के लोगों को भी प्रेरित कर सकें।
जब हम अपनी आत्मा को शांत करते हैं, तो हम समाज में सकारात्मक बदलाव की नींव रखते हैं। योग केवल आसनों का अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव है। यह वह संगीत है, जो हमारी आत्मा को थामता है, हमारे मन को जागृत करता है, और समाज को एकजुट करता है। 21 जून 2025 को, जब हम योग करें, तो यह केवल एक दिन का अभ्यास न हो, बल्कि एक नई शुरुआत हो—एक ऐसी शुरुआत, जो हमें स्वयं से जोड़े, समाज को सशक्त करे, और विश्व को शांति का संदेश दे। क्योंकि योग केवल साँसों की लय नहीं, बल्कि मानवता की धड़कन है। आइए, इस योग दिवस पर हम एक वादा करें—स्वस्थ तन, स्थिर मन, और सजग समाज की नींव रखने का। यही योग का सच्चा सार है, यही भारत की अनमोल देन है, और यही मानवता का भविष्य है—एक ऐसा भविष्य, जहाँ हर साँस शांति की, हर कदम एकता की, और हर मन जागरूकता की कहानी कहे।
- प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)