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काव्य : समझौता - कर्नल डा गिरिजेश सक्सेना “गिरीश”,भोपाल


 काव्य : 

 समझौता

लातों‌के भूत न माने बातों से,

अब कोई बात नहीं  करना |

समझौते ना काम हुए हैं,

समझौता मत कोई करना ||


बातों बातों में देश को इनने,

टुकड़े टुकड़े कर डाला ,

कश्मीर में इनने  फिर , 

मॉ की अस्मत  डाका डाला ।

रोते बिलखते भारत का ,

बंटवारा तक था कर डाला

अक्साईचिन दिया चीन को,

 कश्मीर पर कब्ज़ा डाला ,

फिर बातों का दौर चला ,

देश के अंदर देश बना ,

ध्वजा  विधान अलग किया ,

और तीनसौ  सत्तर भी दे डाला |


बातों बातों में खोया इतना,

 अब कोई बात नहीं करना |

समझौते नाकाम हुए हैं ,

समझौता मत कोई करना ||


पूरब पच्छिम देश बनाया, 

पर नीयत न  इनकी मानी ,

छूट पुट गोली बारी करते,

 पेंसठ में करदी नादानी ,

छम्ब जौरियाँ छोड़ के भागा , 

इच्छोगिल के पार भगाया ,

मार मार के भूत बनाया ,

फिर भारत के कदमों आया ,

देश विदेश के तलवे चाटे,

ताशकंद टेबल पर आया ,

समझौते की खातिर हमने,

पर था अपना लाल गंवाया  |

लाल बहादुर ने समझाया ,

गीदड भपकी से क्या  डरना |

समझौते नाकाम हुए है, 

समझौता मत कोई  करना ||


पांच साल बीते ना पूरे  ,

भूला वो अपनी नादानी,

पछिम ने पूरब पर करने

 की थी मनमानी ठानी  

लाखों लाख हुए शरनागत

 इंदिरा जी को थी हैरानी 

चंडी रूप लिया इंदिरा ने 

और पाठ पढाने की ठानी

अमरीका का बेड़ा थामा 

लाल रूस से हाथ मिलाया 

घुटनों आया पाकी आका

घुटने पर थे लाख सेनानी 


बंग देश आज़ाद बना , 

अब खंड पाक से क्या डरना

समझौते नाकाम हुए है, 

समझौता मत कोई करना    


बारह   बरस रखो बाँध कर ,  

जब निकलेगी टेढी होगी ,

अमन शांति की खाल आतंकी 

सच में था मन का रोगी ,

अटल बिहारी गए बस ले कर,

दोस्ती का था हाथ बढ़ाया, 

अटल लौट लाहौर से आये 

तब कारगिल पर वो चढ आया,

अटल ने रार ना ठानी थी ,

पर हार कभी ना मानी थी ,

अटल ने अपने शेर पठाए , 

पाक को मुंहकी खानी थी |


दौड़े दौड़े आये मुशर्रफ,

 बात अटल से है करना |

समझौते नाकाम हुए है, 

समझौता मत कोई करना ||


अंतराल में पर , 

वानर सैना का राज हुआ,

आतंकी सिरमौर हुए ,

चमन बड़ा  बदहाल हुआ ,

जहाँ तहां पूरे भारत में  

लाशों लाशों के  ढेर पड़े  ,

गीदड और सियार के हाथों, 

सेनाओं के थे शीश कटे ,

वानर सैना वानर बाँट में ,

आपस थी व्यस्त बड़ी  ,

हर त्रासदी से जूझ रही

सीमा पर थी फ़ौज खड़ी |


सौ सौ सैनिक चाहे कट जाए  ,

कदम नहीं  पर है हटना |

समझौते  नाकाम हुए है, 

समझौता मत कोई करना ||


संताप कटा भारत माँ का 

जब वानर सैना  खेत रही ,

प्राण जगे फिर सैना के, 

तब हाथ बंधे मजबूर रही  ,

देश द्रोही गद्दारों के 

तीखे स्वर थे उभर रहे ,

पाकिस्तानी आकाओं के

 मुख मंडल थे उतर रहे ,

हुंकार भरी फिर सेनाओं ने 

सिंहनाद प्रतिकार हुआ ,

अभिनन्दन  चन्दन से 

मॉ भारती का श्रगार हुआ।

लात पडी जब भूतों को ,

भागते भूत से   क्या डरना |

सरकाट हथेली पर रखदो ,

समझौता अब क्या करना।।


   - कर्नल डा गिरिजेश सक्सेना “गिरीश”

जी -1, इन्द्रप्रस्थ –सन सिटी ,

एयर पोर्ट रोड , भोपाल .


देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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