काव्य :
पावस अभिनंदन
विधा-चौपाई
उमड़ -घुमड़ कर बदली छाई।
नाच उठी शीतल पुरवाई।।
धरती माँ की प्यास बुझाने।
बरखा रानी दौड़ी आई ।।
गुस्से में बादल गुर्राया ।
मस्त पवन ने शोर मचाया।।
पर्वत ताल-तलैया जागे ।
खग कुल अपने घर को भागे।।
तड़िता ने जब ली अँगड़ाई ।
बरखा रानी दौड़ी आई ।।
जब अंबर से निकली बूँदे ।
भीगा चातक आँखें मूँदे ।।
वसुधा का कण-कण हरसाया।
टर्र-टर्र मेंढक टर्राया ।।
जुगनू ने आवाज लगाई।
बरखा रानी दौड़ी आई ।।
धरती के आँचल में आकर।
रेणु कणों की प्यास बुझाकर।।
तटिनी के घर पहुँचा पानी ।
छम-छम नाची बरखा रानी।।
जब हलधर ने की अगुवाई।
बरखा रानी दौड़ी आई ।।
गीत विरह के गाये सावन।
मन में आग लगाये सावन।।
कहीं प्रेम के सजते फीते।
कहीं हृदय के घट है रीते।।
जब गीतों ने कजरी गाई।
वर्षा रानी दौड़ी आई।।
- रेखा कापसे 'कुमुद' नर्मदापुरम मप्र
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