काव्य :
पेड़ लगा हम पा सकते
(प्रकृति संरक्षण दिवस पर)
करते रहते आये हैं
हम प्रकृति तुम्हारा दुरुपयोग
तभी बना हम जन का है
ये खतरनाक सा योग
साँस को शुद्ध हवा नहीं
ना जीने,पीने को जल
पर्यावरण प्रदूषण मय
और बढ़ा कोलाहल
नदियाँ मृत सी हो रहीं
ना सहेज सकें वो माटी व वृक्ष,
रेत हीन वो रहीं,और
वन के कटते सब वृक्ष
छाया, फल ,लकड़ी सभी
चाहें सब ही जन गण
और साथ मे बन गये
हम पेड़ों के दुश्मन
सब किसान ,हो चुके निराश
छोड़ सभी ही आस
शहर भीड़ से भर रहे
ब्रज,बचे गाँव ना पास
पेड़,लगा हम पा सकते
छाया, पवन और फल
जल संरक्षण का भी
है,वृक्षारोपण ही हल
ब्रज करता अनुनय विनय
सब ही करें विचार
शुद्ध वायु,जल ,छाया
हो सब मे ये सुधार
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र , भोपाल
Tags:
काव्य