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विरपोस: रिश्तों की आत्मा को छूने वाला पर्व - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


 [प्रसंगवश – 03 अगस्त - विरपोस या वीरफुली पर्व]

विरपोस: रिश्तों की आत्मा को छूने वाला पर्व

[विरपोस: समय की धूल में छिपे रिश्तों की रूहानी चमक]

      रक्षाबंधन से ठीक पहले आने वाला रविवार, जिसे हम विरपोस या वीरफुली पर्व के नाम से जानते हैं, हमारे सांस्कृतिक और भावनात्मक जीवन का एक अनमोल रंग है। यह पर्व केवल एक रस्म नहीं, बल्कि भाई-बहन के पवित्र रिश्ते की गहराई को उजागर करने वाला एक हृदयस्पर्शी उत्सव है। इस दिन भाई अपनी बहन के घर कदम रखता है, न केवल शगुन की भेंट लेकर, बल्कि अपने हृदय में स्नेह, विश्वास और अपनत्व का वह अनमोल खजाना लिए, जो इस बंधन को अमर बनाता है। यह पर्व उन अनकहे वादों, साझा स्मृतियों और अटूट प्रेम का उत्सव है, जो समय और दूरी की हर दीवार को पार कर चमकता है। यह वह पल है जब भाई की उपस्थिति और बहन की मुस्कान एक-दूसरे के लिए सबसे अनमोल उपहार बन जाती है।

विरपोस की सुबह एक अनूठे उत्साह और उमंग का संचार करती है। जब भाई घर से निकलता है, उसकी टोकरी में न केवल मिठाइयाँ, नारियल, वस्त्र या शगुन की वस्तुएँ होती हैं, बल्कि उसमें समाया होता है एक पूरा संसार—बचपन की शरारतें, साथ में बिताए हँसी-खुशी के लम्हे, छोटी-मोटी नोकझोंक और फिर प्रेम भरी सुलह। यह वह दिन है जब भाई अपनी तमाम व्यस्तताओं को ठेंगा दिखाकर, चाहे कितनी भी दूरी क्यों न हो, अपनी बहन के पास पहुँचता है। बहनें इस दिन द्वार पर नजरें गड़ाए अपने भाई का इंतज़ार करती हैं। भाई के आगमन पर तिलक, आरती, मिठाई और मुस्कान से उसका स्वागत होता है—यह स्वागत महज औपचारिकता नहीं, बल्कि दिल से दिल तक का एक अनमोल संवाद है। तिलक की हर बूँद, अक्षत का हर दाना और मिठाई का हर निवाला उस अटूट प्रेम का प्रतीक है, जो इस रिश्ते को सदा के लिए अमर बनाता है।

इस पर्व की असली खूबसूरती इसकी सादगी और गहराई में बसती है। आज के भागदौड़ भरे जीवन में, जब रिश्तों को समय देना किसी चुनौती से कम नहीं, विरपोस हमें हमारी जड़ों से जोड़ने का एक अनमोल मौका देता है। यह पर्व सिखाता है कि रिश्ते निभाने का मतलब उन्हें जीना है, न कि दिखावे के लिए। इसके लिए भव्य आयोजनों की जरूरत नहीं, बस एक सच्ची उपस्थिति और निश्छल भावनाएँ ही काफी हैं। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगाकर न केवल उसकी मंगल कामना करती है, बल्कि उसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा मानती है। वहीं, भाई अपनी बहन की मुस्कान में अपने दिल का सुकून पाता है और उसकी झोली में रखी भेंट के साथ अपना प्रेम, जिम्मेदारी और अपनत्व सौंपता है। यह आदान-प्रदान केवल भौतिक वस्तुओं का नहीं, बल्कि हृदय से हृदय तक बहने वाली भावनाओं का है, जो इस पर्व को और भी अर्थपूर्ण बनाता है।

विरपोस रक्षाबंधन की महज प्रस्तावना नहीं, बल्कि भाई-बहन के रिश्ते की भावनात्मक नींव को और सशक्त करने वाला उत्सव है। यह वह अवसर है जो उन्हें एक-दूसरे के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और अनकहे वादों को दोहराने का मौका देता है। यह पर्व कहता है, “मैं हूँ तेरा साथी—तेरे हर सुख-दुख में, तेरे हर डर के सामने ढाल बनकर।” यह भारतीय संस्कृति की उस अनमोल विशेषता को उजागर करता है, जहाँ त्योहार केवल तारीखें या रीति-रिवाज नहीं, बल्कि जीवंत भावनाओं की अमर परंपराएँ हैं। इन्हें निभाना नहीं, बल्कि आत्मा में उतारना होता है। विरपोस हमें याद दिलाता है कि रिश्तों की मिठास को कायम रखने के लिए बस छोटे-छोटे प्रयास ही काफी हैं—एक हार्दिक मुलाकात, एक आत्मीय मुस्कान, या एक गर्मजोशी भरा आलिंगन।

विरपोस का महत्व एक दिन की सीमा में नहीं बंधता; यह एक ऐसी भावना है जो साल भर हमारे रिश्तों को पोषित करती है। यह उन बहनों की प्रतीक्षा का सम्मान है, जो साल भर अपने भाई के कदमों की आहट सुनने को बेताब रहती हैं। यह उन भाइयों की यात्रा का उत्सव है, जो सैकड़ों किलोमीटर की दूरी को पलक झपकते पार कर अपनी बहन की एक मुस्कान के लिए हाजिर हो जाते हैं। यह पर्व उन स्मृतियों को फिर से जागृत करता है, जो समय की धूल में धुंधलाने लगती हैं। यह हमें याद दिलाता है कि रिश्ते केवल खून के नहीं, बल्कि दिल से दिल तक बंधे उन भावनात्मक धागों के हैं, जो हर तूफान में हमें एक-दूसरे से जोड़े रखते हैं। आज के यांत्रिक और भागमभाग भरे जीवन में, जब रिश्ते औपचारिकताओं की भेंट चढ़ रहे हैं, विरपोस हमें एक गहरा सबक देता है—रिश्तों को जीवंत रखने के लिए भौतिक उपहारों से कहीं अधिक कीमती है एक-दूसरे के लिए समय निकालना। यह पर्व हमें सिखाता है कि सच्चा स्नेह वह है, जो बिना किसी अपेक्षा के दिल से दिल तक बहता है। एक भाई का अपनी बहन के लिए समय निकालना, उसकी खुशियों में शरीक होना, और उसकी चिंताओं को सहानुभूति से सुनना—यही इस पर्व का सच्चा सार है।

विरपोस हमें यह भी बताता है कि रिश्तों की असली ताकत विश्वास और अपनत्व की उस अटूट डोर में है, जो हमें हर परिस्थिति में जोड़े रखती है। यह पर्व उन भाई-बहनों के लिए है, जो एक-दूसरे के लिए ढाल और सहारा बनते हैं। यह उन स्मृतियों का उत्सव है, जो समय की रेत में कहीं दब जाती हैं, मगर इस दिन फिर से जीवंत हो उठती हैं। यह हमें याद दिलाता है कि रिश्तों को पोषित करने के लिए भव्य वादों की नहीं, बल्कि छोटे-छोटे, सच्चे प्रयासों की जरूरत होती है। इस विरपोस पर्व को महज एक रस्म न बनाएँ, बल्कि इसे पूरे दिल और आत्मा से जिएँ। अपनी बहन के द्वार पर जाएँ, उसे बताएँ कि वह आज भी उतनी ही अनमोल है, जितनी बचपन की शरारतों भरे दिनों में थी। उसकी झोली में न केवल भेंट रखें, बल्कि अपना स्नेह, विश्वास और अपनत्व का वह अनमोल खजाना सौंपें, जो समय की हर कसौटी पर खरा उतरे। यही है विरपोस का असली मूल्य, यही हमारी संस्कृति का गहन सौंदर्य, और यही वह बंधन है, जो हर युग, हर दूरी और हर परिस्थिति में हमें अटूट रखता है।

 - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

1 Comments

  1. जीवन भर के अनन्त,निस्वार्थ प्रेम का ही नाम है भाई बहन 🙏🏻

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