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3अगस्त , 'वर्ल्ड फ़्रेंडशिप डे' विशेष: बेमिसाल मित्रों की बनी रहती मित्रता - डॉ बी आर नलवाया, मंदसौर


 3अगस्त , 'वर्ल्ड फ़्रेंडशिप डे' विशेष: बेमिसाल मित्रों की बनी रहती मित्रता

 - डॉ बी आर नलवाया

शिक्षाविद एवं पूर्व प्राचार्य


_प्रस्तुति डॉ घनश्याम बटवाल मंदसौर_

       यदि हमें पूरे जीवन में एक भी अच्छा और सच्चा निःस्वार्थ भाव रखने वाला दोस्त या मित्र मिल जाता है तो जीवन इससे बढ़कर खुशियों और आनंद के क्षण होने की कोई आवश्यकता नहीं होती। एक अच्छा मित्र बनने व बनाने के लिए हमे हमारे ईगो (अहंकार) को छोड़ना होता है एवं खुद ही हाथ को आगे बढ़ाना होता है। बचपन से लेकर कालेज के दिनों तक एवं जीवन के हर पड़ाव पर हमे दोस्तों की जरूरत होती है। इस दुनिया में वह व्यक्ति बहुत अकेला होता है जिसका कोई मित्र नहीं होता। मित्र की जरूरत उसी तरह होती होती है जैसे की भूख और प्यास की होती है। इसलिए एक ही मित्र ऐसा जरूर बनाएं जो आपके जीवन की अंधेरी रातों में भी आपका साथ दे। जो मित्र हमारे जीवन की अंधेरी रात की अपनी प्रतिभा और प्रेम से आनंदित और प्रकाशमान करता हो ऐसा वह एक ही मित्र पर्याप्त होता है।

इस दुनिया में मित्रता की कई जोड़ियां ऐसी रही है जो परस्पर अपनी अपनी खूबियों के साथ दोनो मिलकर एक और एक दो नही बल्कि ग्यारह बन गए।

उल्लेखनीय है कि भाविश अग्रवाल और अंकित भाटी ने अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मात्र 6 वर्ष के समय में उबर को टक्कर देने वाला "ओला स्टार्टअप" खड़ा कर दिखाया  भावेश ने कंपनी में कस्टमर एंड पार्टनर रिलेशन संभाला तो अंकित ने टेक्निकल चीजों पर ध्यान दिया एवं दोनों की जोड़ी ने कमाल कर दिखाया। भाविश जो कभी माइक्रोसॉफ्ट में काम करते थे बहुत जल्दी ही उस नौकरी से बोर हो गए एवं जब वह भारत लौटे तो उनका उद्देश्य था कि जीवन में कुछ रचनात्मक तथा मन को भाए ऐसा काम करना है। उन्हीं की तरह यहां अंकित भाटी भी यही सोच रहे थे। तब उन्होंने अंकित भाटी के साथ मिलकर ओला की शुरुआत की। दोनों को ही अपने काम से बहुत प्रेम था और दोनों को ही शुरुआती दिनों में सफल होने का जुनून भी था इसलिए दोनों ने डटकर मेहनत की। शुरुवाती दिनों वे ही कस्टमर के फोन उठाते थे और किसी को छोड़ने जाने के लिए स्वयं ही टैक्सी से एयरपोर्ट भी चली जाते थे। वे अपने स्टार्टअप की  को बारीकियों को सीख रहे थे और जल्द ही दोनों ने हर चीज पर अपनी मजबूत पकड़ बना  ली। आखिरकार जल्द ही दोनों दोस्तों की मेहनत रंग लाई और उनकी जोड़ी सुपरहिट रही यह मित्रता की एक बेमिसाल कहानी है।

ऐसे ही एक दूसरे उदाहरण में दो दोस्तों ने मिलकर एक बड़ा सपना देखा और बड़े लक्ष्यों को हासिल भी किया। इस संदर्भ में फ्लिपकार्ट के संस्थापक सचिन और बिन्नी जिन दोनों का ही उपनाम बंसल है और इससे ऐसा लगता है कि मानो दोनों भाई हैं लेकिन वे अच्छे मित्र हैं। दोनों का ही बचपन चंडीगढ़ में बीता और दिल्ली आईआईटी से दोनों ने साथ में पढ़ाई की। पढ़ाई के बाद दोनों अलग-अलग कंपनियों में काम करने लगे। 1 वर्ष बाद जब वे दोनों अमेजॉन कंपनी में साथ साथ काम कर रहे थे वहां उन्होंने अपनी खुद की कंपनी का सपना देखा और यही से फ्लिपकार्ट का जन्म हुआ। यह दूसरी बात है कि फ्लिपकार्ट की एक बड़ी हिस्सेदारी वालमार्ट ने खरीदने का करार किया एवं सचिन बंसल फ्लिपकार्ट से भले ही बाहर हो गए पर आज भी उन दोनों की दोस्ती कायम है।

निश्चित ही हमें ऐसे ही मित्रों की खोज में रहना चाहिए जिनमें हमसे अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला या उनका साथ उसी तरह पकड़ना चाहिए जैसे भाविश अग्रवाल और अंकित भाटी तथा सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने एक दूसरे का साथ दिया एवं वैसे ही सुग्रीव ने श्रीराम का पल्ला पकड़ा था। यह स्पष्ट है कि मित्र हो तो प्रतिष्ठित और शुद्ध हृदय के हो, साथ ही मृदुल एवं पुरुषार्थी हो, शिष्ट एवं सत्यनिष्ठा हो जिससे की हम अपने आपको उनके भरोसे पर छोड़ सके और यह विश्वास कर सके कि जीवन में उनसे हमे किसी भी प्रकार का धोखा नहीं मिलेगा।

श्री कृष्ण एवं सुदामा की दोस्ती में जमीन आसमान का अंतर होने के बावजूद अनेको वर्षो के बाद जब दोनों मिले तो ऐसा लगा कि समय ही थम गया हो। अब इस कलयुग में ऑनलाइन के दौर में दोस्त भी इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के माध्यम से बनने लगे है। लेकिन उन हजारों ऑनलाइन दोस्तों पर वह एक अकेला दोस्त भारी पड़ता है जिसे आप वास्तविक दुनिया में से चुनते है। अरस्तु ने भी कहा था "सबका दोस्त किसी का दोस्त नहीं होता" और ऑनलाइन दुनिया मैं आपको ऐसे ही दोस्त मिलेंगे जो सभी के दोस्त होते है। वैसे ऑनलाइन दोस्ती से परहेज करना इसलिए भी आवश्यक है कि ऑनलाइन की दुनिया में किसी पर भी भरोसा करना बहुत मुश्किल है एवं इन्हें अनफ्रेंड कर देने से तनाव व मनमुटाव भी बढ़ता है। ऑनलाइन दोस्त मदद के लिए कभी भी आपके पास नहीं पहुंच पाता है।

अमेरिका के एक पत्रकार ने हेनरी फोर्ड से उनके अंतिम दिनों में एक प्रश्न पूछा कि क्या आपको जीवन के सभी सुख प्राप्त हैं? हेनरी ने कहा की मै धन के नशे में कभी भी किसी से दिल से नहीं जुड़ पाया, जब भी किसी से मिलने की कोशिश की तो धन का अहंकार दीवार बनकर मेरे सामने खड़ा हो गया। मेरे जीवन में एक सच्चे मित्र का जीवन भर अभाव रहा।

अतः भले ही हमारी सारी जिंदगी सुख से बीते किंतु एक अच्छे दोस्त का ना होना सचमुच एक बहुत बड़ी एक कमी होती है। इस वर्ल्ड फ्रेंडशिप डे पर कुछ ऐसी हिदायतें जो आपकी दोस्ती को मजबूत बनाए रखने में मददगार साबित होगी:-

# अपने दोस्तों के सामने उसके घरवालों या रिश्तेदारों की बुराई बिल्कुल ना करें, क्योंकि दोस्ती में छिद्रान्वेषण की प्रवृत्ति अच्छी नहीं होती।

# मित्र अच्छा चरित्रवान, उत्तम व्यवहार, अच्छे आचरण वाला, ज्ञानवान व सकारात्मक हो, उसे ही सच्चा मित्र बनाना चाहिए।

# दोस्ती में यदि मजबूती चाहते हैं तो मित्र से बहस करना, उधार लेना देना व उनके घर की महिलाओं से ज्यादा घुलना मिलना वर्जित है, क्योंकि इन बातों से दोस्ती कभी कभी दुश्मनी में भी बदल जाती है।

# दोस्त से खुशमिजाज होकर मिले एवं बातें करें इसलिए कि यदि वह अपनी परेशानी का दुखड़ा आपसे साझा करें तो हम तसल्ली से उसके हालात सुनकर व समझकर उसे उचित सलाह दे सकें।

#यदि दोस्ती सच्ची है व निभाने की चाहत है, तो छोटी छोटी बातों को नजरअंदाज करना सीखें।

दोस्त बना लेना तो बहुत आसान है परंतु दोस्ती निभाना उतना ही कठिन है, क्योंकि कई बार अच्छी दोस्ती में बहुगलतफहमी उत्पन्न हो जाती है। ऐसा होने पर उन गलतफहमियों को दूर करने के प्रयास भी करना चाहिए। दोस्ती में हमेशा केवल अपेक्षा ही नहीं रखे बल्कि अपनी और से त्याग के लिए भी तैयार रहना सीखे। याद रहे दोस्ती का हाथ हमेशा साथ।

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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