मृत्यु ,एक विवेक जगाती है
जन्म के साथ मृत्यु का जुड़ाव रहा हैं । हमने जन्म लिया हैं तो हमारी मृत्यु निश्चित हैं । मेरे पास में से हवा का एक झौंका आया और मन प्रफुल्लित हो उठा । वह थोड़ी देर बाद दूसरा हवा का झौंका मेरे पास आया तो मेरा मन क्लांत हो उठा। वह तब मेरे मन में प्रश्न उठा कि क्या हवा सुरभित और दूषित है ? नहीं ! हवा स्वयं में न सुरभित है न ही दूषित हैं । हवा तो सिर्फ वाहक है । वह रास्ते में फूल खिले तो वह खुशबू ले आई और यदि कूड़ा करकट मिला तो बदबू ले आई। हमारे भी वैसे ही विचार हैं जो हमारे आंतरिक व्यक्तित्त्व के सूचक व वाहक आदि हैं ।हमारे यदि भीतर में अच्छे भाव मिलेंगे तो वह अच्छाई ले आएगा और यदि बुरे भाव मिले तो वह हमारे साथ बुराई ले आएगा। हमारे आंतरिक व्यक्तित्त्व को हम देख नहीं सकते और न ही कोई साधन हमारे पास देखने का है। अतः हमारे विचार ही सबसे अच्छा माध्यम खास हैं । वह उसके द्वारा हम आंतरिक स्थिति को सही से जान सकते हैं । हमारा स्वयं का व्यक्तित्त्व परख और पहचान कोई हो सकते हैं तो वह हमारे मन की खुराक विचार है। अतः हमारा जैसा विचार होगा वैसा ही आचार होता हैं ।अतः हम यह न भूलें कि हमारी आत्मा कभी मरती नहीं हैं । वह कभी भी नष्ट नहीं होती हैं । वह केवल अपना शरीर बदलती है। अतः हमको शरीर की मृत्यु यह स्मरण कराती है कि जो स्थायी नहीं उससे लगाव समझदारी नहीं हैं ।वह वास्तव में मृत्यु हमारा एक विवेक जागती है कि जो अजर-अमर है हम उसे जाने। हम आत्मा को पहचानें और कभी भी मृत्यु से विचलित नहीं हुए। वह मृत्यु एक दु:खद घटना नहीं अपितु नवयोनि में जाने का प्रवेश द्वार है। हम मृत्यु को सही से यूँ या और कोई सही चिन्तन से समझ कर जियें और जब भी यह आए तो उसको सही से प्रसन्नता से स्वीकार करें ।यही हमारे लिए काम्य हैं ।
- प्रदीप छाजेड़
( बोरावड़ )