देशवासियों को चाहिए समग्र स्वतंत्रता !!!
- आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार
आज भी हमारी स्वतंत्रता अपूर्ण कही जा सकती है। स्वतंत्रता केवल भौगोलिक नहीं होती है, यह मानसिक भी होती है और आज भी हम मानसिक रूप से परतंत्रता की बेड़ियों से जकड़े हुए हैं। हमने राजनैतिक स्वतंत्रता तो अवश्य प्राप्त ली है परन्तु मानसिक स्वतंत्रता या मानसिक आजादी हमें आज तक हासिल नहीं हो पाई है। क्या हमने सच्ची स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है? वास्तविकता यही है कि हमारी मानसिक गुलामी या मानसिक दासता के कारण हमारी स्वतंत्रता आधी-अधूरी है। देश को मिली आजादी के बाद देशवासी आज भी मानसिक गुलामी से मुक्त नही हुए है और इसलिए उन्होंने स्वदेशी के प्रति जितना लगाव नहीं उससे कही ज्यादा वे अंग्रेजियत की यहाँ छोड़ी परपराओं, वेशभूषाओं, भाषा, उनकी शिक्षा प्रणाली, न्याय प्रणाली और उनके बनाये गये कानूनों आदि से प्रेम करते है और उन्हें ही श्रेष्ठ मानते आ रहे है । महाराष्ट्र जैसे कई प्रदेश मातृभाषा हिंदी के प्रति नफरत से भरे है फिर कैसे कह सकते है की अन्य प्रदेशवासी अपने ही देश में स्वदेश परम्पराओं, वेशभूषाओं, भारतीय लिपि (देवनागरी लिपि) भारतीय भाषाओं, भारतीय शिक्षा प्रणाली, चिकित्सा प्रणाली, न्याय प्रणाली तथा अन्य सभी भारतीय वस्तुओं को हेय अथवा कमतर मानने की भावना से खुद को मुक्त रखे हुए है, ये सभी आज आजाद देश में खुद को मानसिक गुलामी या मानसिक दासता से मुक्त नही कर सके है।
दो सौ सालों तक अंग्रेज हमारा मानसिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक एवं आर्थिक शोषण किया करते थे इसलिए हम भारतीय अंग्रेजों से नफरत करते थे और उनको भारत से बाहर भगाना चाहते थे। हम लोग अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने में भले ही सफल हो गये हों परन्तु तब भी वर्तमान में वे ही तौर तरीके अपनाये जा रहे हैं जो कि अंग्रेजों द्वारा अपनाये जाते थे। शासन एवं प्रशासन में भारतीय लोग कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक बन कर आ अवश्य गये हैं परन्तु उनके अधिकांश कार्यशैली अंग्रेजों के समान होने के कारण वे भी अंग्रेजों की तरह ही प्रतीत होते हैं। बस अंतर केवल इतना ही लगता है कि वे गोरे अंग्रेज थे और ये काले अंग्रेज हैं। विश्व के जिन देशों ने दूसरे देशों से स्वतंत्रता प्राप्त की उनमें से कुछ देशों ने स्वतंत्रता हासिल करने के तत्काल बाद शासक देशों की परपराओं, संस्कृतियों, भाषाओं, खान-पान व रहन-सहन आदि को छोड़कर अपने-अपने देशों की परपराओं, संस्कृतियों, भाषाओं को अपना लिया, किन्तु भारतीय राजनेताओं ने स्वतंत्रता के 78 साल बीत जाने के बाद भी अंग्रेजों की अधिकांश परपराओं, वेश-भूषाओं, खान-पान व रहन-सहन, उनकी भाषा, उनकी लिपि (रोमन लिपि) को नहीं छोड़ा है।
यह अलग बात है की वर्तमान नरेंद्र मोदी की सरकार ने अंगेजों के बनाये कानून से देशवासियों को मुक्ति दिला कर भारतीय कानून लागू कर दिए किन्तु न्यायालयों में वकीलों- जजों द्वारा पहने जाने वाली वेशभूषा काला कोट-गाउन आदि के साथ दी जाने वाली उपमाओं-उपाधियों से स्वतंत्रता प्राप्त नही कर सके है और अंग्रेजों के पेटर्न को अपनाकर मानसिक गुलामी को जीने को विवश है। आज तक कुछ चीजें एवं कार्य ऐसे अवश्य हो सकते हैं जो कि विश्व के सभी देशों के नागरिकों के लिए उपयोगी तथा सार्थक हों, परन्तु सभी चीजें एवं सभी कार्य सभी देशों के नागरिकों के लिए उपयोगी तथा सार्थक कदापि नहीं हो सकते हैं। इंग्लैण्ड तथा यूरोप के ठण्डे देशों में टाई बाँधना उपयुक्त हो सकता है लेकिन भारत जैसे देश में सभी मौसमों में टाई बाँधना उचित नहीं जान पड़ता है जबकि अपनी मानसिक गुलामी के कारण हमारे ही कुछ लोग टाई बाँधने में गर्व महसूस करते हैं। हमारे विश्वविद्यालयों में काले चोगे पहनकर डिग्रियाँ बँटवाई जाती हैं। अदालतों में काले चोगे धारण करके बहसें करवाई जाती हैं। प्रकाश की ज्योति बुझाने को हमारे देश में अपशकुन माना जाता है परन्तु हम लोग बहुत गर्व के साथ मोमबत्तियाँ बुझाकर तथा केक काटकर अपने बच्चों के जन्मदिवस मनाकर अंग्रजी मानसिकता से मुक्त नही हो सके हैं।आज भले ही वर्तमान मोदी सरकार ने अंग्रेजों द्वारा बनाए गये कानूनों को हटा दिया किन्तु पुलिस थानों में कार्यवाही में हम यथावत उन कानूनों के अपनाये जाने की आदतों से मुक्त नही हो सके और भारतीय कानूनों में उनके भय से आज भी जनता त्रस्त है।
हम स्कूल-कालेजों में अंग्रेजों द्वारा लिखवाये गये व् आजादी के बाद मुस्लिम वर्ग से बनाये गए शिक्षामंत्री के रूप में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, हुमायूँ कबीर जी, एमसी छागला और फकरुद्दीन अली अहमद आदि के कारण सनातन धर्म के इतिहास से वंचित रहे और देशवासिओं पर अत्याचार कर चोर लुटेरे के रूप में हिन्दू राजाओं पर हमला कर, मंदिरों को नष्ट कर मुग़ल धर्म को प्रतिष्टित करने वाले मुस्लिम आक्रान्ताओं को महान बनाने वाले झूठे और भ्रामक इतिहास को पढ़ाया जाने लगा जिसे छात्र आज भी पढ़ रहे है और सनातन धर्म, रामायण, गीता, महाभारत के इतिहास से वंचित है। अब तो देश को नरेंद्र मोदी जैसा नेतृत्व मिला है क्या वे आजाद भारत की आने वाली पीढ़ी को लॉर्ड मैकाले द्वारा चलाई गई शिक्षा प्रणाली को जमी में दफ़न कर ऋषि-गुरुकुल परम्परा को प्रतिष्ठित कर सकेंगे? एक तथ्य यह भी विदित है कि अंग्रेजों के जमाने में भारत से कच्चा माल कौड़ियों के मोल इंग्लैण्ड भिजवाया जाता था और इंग्लैण्ड से तैयार माल अत्यन्त ऊँचे दामों पर भारत में लाया जाता था। आज वैश्विकरण के युग में भले अमेरिका इस परम्परा को थोपकर आर्थिक गुलामी की और ले जाने के लिए दबाव डाल रहा है और देश किसी भी स्थिति में उसका मुकाबला कर उसके मुह पर करारा तमाचा जड़कर विश्व के मानचित्र पर मजबूती से खड़ा है, क्या भारत से अंग्रेजों के चले जाने के बावजूद भारत का आर्थिक शोषण जारी करने वाली मैकाले की शिक्षा प्रणाली से हमे स्वतंत्रता नही मिलेगी?
विश्व के कुछ देशों की प्रभावशाली महिलायें सोशल मीडिया की मदद से भारतीय महिलाओं से सलाह माँगती हैं कि वे अमुक अवसर पर कौन सी साड़ी पहनें परन्तु अपनी मानसिक दासता के कारण कुछ भारतीय महिलाऐं अंग्रेज महिलाओं जैसे वस्त्र धारण करने में गर्व महसूस करती हैं। सपूर्ण विश्व के विद्वान एवं भाषाविद् भारत की देवनागरी लिपि को एक वैज्ञानिक एवं विकसित लिपि मानते हैं, परन्तु मानसिक गुलामी की भावना से ग्रसित हमारे ही कुछ लोग रोमन लिपि को एक सरल, विकसित तथा उपयोगी लिपि मानते हैं। इसलिए आजकल हमारे देश के कुछ लोग अपने मोबाइल फोनों, लैपटॉपों से अपने अधिकांश संदेश (मैसेज) रोमन लिपि में ही लिखते हैं। अपनी सरलता एवं वैज्ञानिकता के कारण हमारी हिन्दी भाषा सपूर्ण विश्व में तेजी के साथ पनप रही है परन्तु हमारे देश के कुछ लोग आज भी हिन्दी को अविकसित तथा अनुपयोगी भाषा मानते हैं, यह वोटों की राजनीति नही तो क्या है?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय, संसद, केन्द्रीय शासन, केन्द्रीय प्रशासन एवं संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की जाने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं में आज भी अंग्रेजी का ही बोलबाला है। स्वदेशी को अपनाने के ढोंग तो बहुत किये जाते हैं परन्तु स्वदेशी को कुचलने के लिए सभी संभव प्रयास किये जा रहे हैं। भारत में जब तक अंग्रेजों की परपराएँ, उनकी भाषा अंग्रेजी और उनके अधिकांश तौर-तरीके चलते रहेंगे तब तक यह स्वीकार करने में मानसिक कष्ट होता रहेगा कि हम आजाद हो गये हैं। कोई यह तो बताये कि क्या हम वास्तव में आजाद या स्वतंत्र हो गये हैं? सच्ची आजादी तो तभी हासिल हो पायेगी जब हम अंग्रेजों की भाषा अंग्रेजी, उनकी गलत परपराओं, निरर्थक वस्तुओं की आवश्यकता जतलाकर व्यापार कर जबिया थोपने वाली कम्पनियों को विदा कर सके और देसवासियो को ठगने लुटने से रोक सके? जन-जन की भाषा हिन्दी, भारतीय परपराओं और संस्कृति, सभ्यता को हम अपनाने के साथ सनातन धर्मानुगत परिष्कृत वेद पुराणों उपनिषदों की परा-अपरा जगत की शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करा कर अपने मौलिक विचारों, मान्यताओं और मूल्यों की स्थापना कर सके तथा दूसरों के दिखाए रास्ते से जिस प्रकार अब तक मंजिल की प्राप्ति संभव न होने से वंचित रहे है, उससे स्वतंत्र हो सके ताकि अपने लक्ष्य एवं उद्देश्य की प्राप्ति के साथ हम समग्र स्वतंत्रता प्राप्त कर सके।
- आत्माराम यादव पीव वरिष्ठ पत्रकार
श्री जगन्नाथधाम काली मंदिर के पीछे, ग्वालटोली
नर्मदापुरम मध्यप्रदेश मोबाईल – 9993376616