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दबाव में नहीं, संवाद में विश्वास: भारत का वैश्विक संदेश - - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी


दबाव में नहीं, संवाद में विश्वास: भारत का वैश्विक संदेश

[तेल, टैरिफ और ताकत: भारत की कूटनीति बनाम अमेरिकी दादागिरी]

      भारत की धरती, जो कभी गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी, आज विश्व मंच पर अपनी सशक्त आवाज और अडिग संप्रभुता के साथ खड़ी है। लेकिन अमेरिका, जो खुद को विश्व का नेतृत्वकर्ता मानता है, भारत की इस स्वतंत्रता और रूस के साथ उसकी अटूट दोस्ती को पचा नहीं पा रहा। डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर 25% अतिरिक्त टैरिफ थोपकर कुल 50% शुल्क का बोझ डाल दिया है, यह कहते हुए कि भारत रूसी तेल की खरीद के जरिए रूस की युद्ध मशीन को ईंधन दे रहा है। यह कदम न केवल भारत-अमेरिका संबंधों को तनाव की ओर धकेलता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि अमेरिका अपनी भू-राजनीतिक दादागिरी को आर्थिक हथियारों के जरिए लागू करना चाहता है। लेकिन भारत, जो सदियों से हर तूफान को झेलकर और मजबूत हुआ है, इस बार भी न झुकेगा, न रुकेगा।

भारत और रूस का रिश्ता केवल व्यापार का नहीं, बल्कि विश्वास और आपसी सम्मान का प्रतीक है। जब 2022 में यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंधों की बौछार कर दी, भारत ने रूसी तेल की खरीद को बढ़ाया। जनवरी 2022 में जहां भारत रूस से मात्र 0.2% तेल आयात करता था, वहीं अगस्त 2025 तक यह आंकड़ा 40% तक पहुंच गया। भारत अब रोजाना 20 लाख बैरल से अधिक रूसी तेल आयात करता है, जिसने न केवल भारत को अरबों डॉलर की बचत कराई, बल्कि घरेलू ईंधन कीमतों को स्थिर रखने में भी मदद की। यह सस्ता तेल भारत की ऊर्जा सुरक्षा का आधार बना, जिसने 1.4 अरब लोगों की जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाई। भारत का यह कदम वैश्विक तेल बाजार में स्थिरता लाने वाला साबित हुआ, क्योंकि रूसी तेल की आपूर्ति ने विश्व में तेल की कीमतों को नियंत्रित रखा। लेकिन अमेरिका, जो खुद रूस से यूरेनियम और पैलेडियम जैसी सामग्रियों का आयात करता है, भारत को निशाना बनाकर अपनी दोहरी नीति का परिचय दे रहा है।

ट्रंप का दावा कि भारत रूस की युद्ध मशीन को समर्थन दे रहा है, न केवल आधारहीन है, बल्कि हास्यास्पद भी है। यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेजेंटेटिव (USTR) के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका ने 2024 में रूस के साथ 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार किया। अगर रूस से व्यापार युद्ध को बढ़ावा देता है, तो अमेरिका को पहले अपनी नीतियों की समीक्षा करनी चाहिए। भारत ने यह भी याद दिलाया कि बाइडेन प्रशासन ने स्वयं भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया था, ताकि वैश्विक ऊर्जा बाजार में उथल-पुथल न हो। भारत ने रूसी तेल को रिफाइन कर यूरोप और अन्य देशों को सस्ता ईंधन उपलब्ध कराया, जिससे पश्चिमी देशों को ही फायदा हुआ। फिर भी, ट्रंप ने भारत को निशाना बनाकर यह साबित कर दिया कि उनकी अमेरिका फर्स्ट नीति वास्तव में “अमेरिका अकेला” बनकर रह गई है।

ट्रंप का 50% टैरिफ भारत के लिए आर्थिक चुनौती तो ला सकता है, लेकिन यह भारत की प्रगति को रोक नहीं सकता। 2024-25 में भारत ने अमेरिका को 87.4 बिलियन डॉलर का सामान निर्यात किया, जिसमें फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, और आईटी सेवाएं शामिल हैं। इस टैरिफ से भारतीय कपड़ा और जूता उद्योग पर असर पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिका इनका सबसे बड़ा बाजार है। लेकिन भारत ने पहले ही जवाबी रणनीति तैयार कर ली है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन और हिंदुस्तान पेट्रोलियम जैसी रिफाइनरियों ने रूसी तेल की खरीद पर अस्थायी रोक लगाई है और सऊदी अरब, इराक जैसे वैकल्पिक स्रोतों की तलाश शुरू कर दी है। इसके साथ ही, भारत ने मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के जरिए स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा दिया है, जिससे वह वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति को और मजबूत कर रहा है।

भारत की कूटनीति इस पूरे प्रकरण में एक मिसाल बनकर उभरी है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए वही रास्ता चुनेगा, जो उसके नागरिकों के लिए सबसे लाभकारी हो। यह बयान भारत की उस रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाता है, जो किसी भी बाहरी दबाव के सामने नहीं झुकती। भारत ने रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को भी मजबूती से बनाए रखा है। एस-400 मिसाइल सिस्टम, सुखोई जेट, और ब्रह्मोस मिसाइल जैसे सौदे भारत की रक्षा ताकत का आधार हैं। ट्रंप की धमकी कि भारत को रूस से हथियार खरीदना बंद करना चाहिए, भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला है। लेकिन भारत ने बार-बार साबित किया है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करता। रूस ने दशकों तक भारत का साथ दिया, खासकर उन मौकों पर जब अमेरिका ने हथियारों की आपूर्ति से इनकार किया था।

ट्रंप की नीति को देखें, तो यह साफ है कि वह भारत पर दबाव बनाकर रूस को कमजोर करना चाहते हैं। लेकिन यह रणनीति उलटे उनके लिए ही भारी पड़ सकती है। भारत ने अप्रैल-जून 2025 तिमाही में अमेरिका से तेल आयात को 114% बढ़ाया है, जिससे यह साफ है कि भारत वैकल्पिक रास्तों को तलाशने में सक्षम है। इसके अलावा, भारत ने ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंचों पर अपनी सक्रियता बढ़ाकर वैश्विक कूटनीति में अपनी धमक स्थापित की है। ट्रंप का यह दावा कि भारत अमेरिकी सामानों पर 100% टैरिफ लगाता है, भ्रामक है। भारत का टैरिफ ढांचा विश्व व्यापार संगठन के नियमों के अनुरूप है, और अमेरिका भी अपने सामानों पर कई तरह के शुल्क लगाता है।

यह टैरिफ युद्ध भारत के लिए एक चुनौती है, लेकिन यह भारत की ताकत को और निखारने का अवसर भी है। भारत ने न केवल रूस के साथ अपनी दोस्ती को मजबूत किया, बल्कि वैश्विक मंच पर अपनी स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता का परचम लहराया। अमेरिका की यह दादागिरी भारत को झुका नहीं सकती, क्योंकि भारत अब वह देश नहीं, जो विदेशी दबाव में अपने हितों को ताक पर रख दे। भारत ने सस्ते तेल से अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत किया, वैश्विक ऊर्जा बाजार को स्थिरता दी, और रूस के साथ अपने रणनीतिक संबंधों को अटूट रखा। यह समय है कि अमेरिका अपनी एकतरफा नीतियों को छोड़कर भारत जैसे उभरते विश्व शक्ति के साथ रचनात्मक साझेदारी की दिशा में कदम बढ़ाए। भारत की यह अडिग भावना न केवल इसके नागरिकों के लिए गर्व का विषय है, बल्कि यह विश्व को यह संदेश भी देती है कि भारत अब किसी के सामने सिर नहीं झुकाएगा।

 - प्रो. आरके जैन “अरिजीत”, बड़वानी (मप्र)

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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