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काव्य : शबनम के आँसू - डा.नीलम , अजमेर


 काव्य : 

शबनम के आँसू


गम से लबरेज शब 

रोती रही

हर फूल-पात भिगोती

रही रातभर

भोर ने दी दस्तक

मुख छुपा बैठी

मगर रविकिरण से

छुप न सके

शबनम के आँसूं।


गिरे जो आसमां के

सीने से

पात-पात पर ठहर 

गये

थी पीर की पराकाष्ठा

से भरे

गिरकर न बिखर

सके

भोर किरण भी गमगीन

हो चुगने लगी

मोती समझ नूर के

शबनम के आँसूं।


     -  डा.नीलम , अजमेर

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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