काव्य :
शबनम के आँसू
गम से लबरेज शब
रोती रही
हर फूल-पात भिगोती
रही रातभर
भोर ने दी दस्तक
मुख छुपा बैठी
मगर रविकिरण से
छुप न सके
शबनम के आँसूं।
गिरे जो आसमां के
सीने से
पात-पात पर ठहर
गये
थी पीर की पराकाष्ठा
से भरे
गिरकर न बिखर
सके
भोर किरण भी गमगीन
हो चुगने लगी
मोती समझ नूर के
शबनम के आँसूं।
- डा.नीलम , अजमेर
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