काव्य :
धरा की धरोहर
आ गई वो सुहानी वक्त निराली ।
धरती पर लहलहाती खेतों में हरियाली ।।
मेहनत कर खेतों में सींचे खून पसीने।
हरियाली से लहलहाते धरती मां के सीने ।।
थकहारकर जब मेढ़ों पर बैठे किसान।
देख हरियाली मिट जाती उसकी थकान।।
धरती मां की गोद हो जाती हरी भरी ।
धरती पर पड़ती जब जब धूप सुनहरी ।।
सुबह की पहली किरण संग किसान खेतों में उतर जाता है।
धूप-छाँव की परवाह किए बिना खेतों में हल चलाता है।।
पसीने की हर बूँद मिट्टी को जीवन देती है।
धरती माँ उसकी तपस्या से ही हरियालीओढ़ लेती है।।
हरियाली ओढ़े ये धरा।
मन और आंखों को मोह लेती हरा भरा।।
बीज बोता है उम्मीद के संग सपनों को जोड़कर।
बारिश का इंतज़ार करती धरा बाहें खोलकर ।।
आंधी हो या तूफ़ान, हिम्मत नहीं है हारता ।
कठिनाइयों के बीच भी मुस्कुराकर है पुकारता ।।
जब खेतों में लहराती सुनहरी बालियाँ झूमती।।
उसकी हरियाली की खुशियां आंखों को चूमती ।।
फसल काटकर मिलता उसकी मेहनत का फल ।
तब होता है एक किसान का जीवन सफल।
किसान ही धरती का सच्चा रखवाला ।
उनसे ही मिलता अन्न और जीवन में उजाला ।।
श्रम से ही उसके सभ्यता साँसें ले पाती है।।
किसान के बिना तो दुनिया अधूरी नज़र आती है।
छत्तीसगढ़ धान का कटोरा, हरियाली की शान है।
सुनहरी फसलों से महकता,
ये धरती की जान है।।
- श्रीमती प्रतिभा दिनेश कर
विकासखंड सरायपाली
जिला महासमुंद छत्तीसगढ़
धन्यवाद सोनी sir 🙏🏻 अपनी पत्रिका में हमारी भावनाओं को स्थान देने पर साझा करने हेतु
ReplyDeleteBahut bahut bahut hi sundar rachna 👌🏻👌🏻
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