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जीवन का उद्देश्य - विवेक रंजन श्रीवास्तव ,भोपाल


 जीवन का उद्देश्य 

 - विवेक रंजन श्रीवास्तव ,भोपाल

     पिता की तेरहवीं की गहमा गहमी के बाद वह अवसाद में अकेला शांत , बरामदे में कुर्सी पर बैठा अपनी हथेलियां देख रहा था। लकीरें जैसे उससे कुछ पूछ रही हों।  मन में  खालीपन था ।  उसी सूनेपन से यह प्रश्न उठ रहा था .. मैने जन्म क्यों लिया?

यह  सवाल उसके जेहन में सोते जगते चिपक रहा था।  पिता की पुरानी अलमारी में फाइलें खोलते हुए , उसे एक छोटा सा कागज हाथ लगा। पीला पड़ चुका था। उस पर पिता की लिखावट थी।  लिखा था,  अगर मैं कभी न रहूं तो समझना कि मेरी जगह तुम हो। मेरे सपने तुम्हारी जिम्मेदारी हैं। दुनिया को थोड़ा बेहतर छोड़ सको तो अच्छा हो।

वह देर तक उस कागज को देखता रहा। उसे कोई दार्शनिक उत्तर नहीं मिला, कोई बड़ा उद्देश्य नहीं सूझा। बस इतना समझ में आया कि उसका जन्म किसी महागाथा के लिए नहीं, किसी छोटे से सिलसिले को आगे बढ़ाने के लिए हुआ है। उसी दिन से उसने तय किया कि ऑफिस से के बाद वह उस स्कूल जाया करेगा , जहां पिता वर्षों तक मुफ्त पढ़ाने जाते थे। 

जब वह वहां पहुंचा तो बच्चों की आंखों में उत्सुकता थी, सवाल थे, सपने थे जिन्हें वह पढ़ पा रहा था।

वहां से लौटते हुए जब उसके मन में  फिर सवाल आया,  मैने जन्म क्यों लिया? तो साथ ही उत्तर भी मिला , उसने बच्चों की हंसी को याद किया, अपनी थकान को हारता हुआ महसूस किया और हल्के से मुस्कुरा दिया। उत्तर शब्दों में नहीं था। वह उसके कदमों में था, उसके अगले दिन की योजना में था, और उस संकल्प में था कि वह कल फिर उसी स्कूल जाएगा। प्रश्न अभी भी जीवित था, और शायद इसी वजह से जीवन भी।

विवेक रंजन श्रीवास्तव

देवेन्द्र सोनी नर्मदांचल के वरिष्ठ पत्रकार तथा युवा प्रवर्तक के प्रधान सम्पादक है। साथ ही साहित्यिक पत्रिका मानसरोवर एवं स्वर्ण विहार के प्रधान संपादक के रूप में भी उनकी अपनी अलग पहचान है। Click to More Detail About Editor Devendra soni

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