धरती कहे पुकार के
धरती का हर्ष,हरियाली में दिखता है,उसके वन,उपवन में लहराता महसूस होता है,फूलों के,रंग,रूप ,खुशबू बन फैलता है।उसकी मिट्टी की आर्द्रता नयनों में खुशी लाती है,उसके शुष्क होते ही जीवन का प्राण और सब प्राणी अस्तित्वहीन हो जायेगे एक दिन।वनस्पति,जीव,मानवजीवन सब धरती पर आश्रित हैं,इस आश्रय को हटा कर,कल्पना करें हम, क्या होगा।धरती की पुकार,या उसकी चीत्कार,उसका रुदन समझने के लिए हमें अपनी धरती से जुड़ाव चाहिए,लगाव चाहिए,प्रेम करें हम धरती की माटी से।
शाब्दिक अर्थ में या व्यवहारिक अर्थ में देखें और स्वयं को जवाब दें हमने धरती के लिए क्या किया है।धरती की पुकार है कि,मिट्टी संरक्षण हो, माटी बह न जाए इसके लिए,वृक्षारोपण हो, खेतों की सिंचाई हो सके,उसके लिए,जल संरक्षण ,जल सदुपयोग के प्रयास हों,जल दुरूपयोग रोकना,महती जिम्मेदारी है।ये प्रयास सरकारी और निजी तौर पर,सम्मिलित प्रयास हो,तभी धरती का विलाप मिट सकता है।
धरती का जितना दोहन हो रहा है,उतना धरती या मिट्टी संरक्षण नही हो पाने की वजह से ही,अपने देश में पीने के पानी तक की कमी हो रही है,खेती की बात तो दूर है।कल्पना कीजिए सब जगह शहर विकसित होते जा रहे हैं, कंक्रीट के जंगल विकसित होते जा रहे है,वन और खेत नहीं बच रहे हैं,भयावह स्थितियां हमने बना ली है।
धरती पुकारती है,धरती का बोझ न बनें हम,धरती से शाब्दिक और व्यावहारिक अर्थों में जुड़े हम।
दूसरे अन्य कई पहलू भी हैं,यह हमारे समाज और धरती की पुकार है, कि सच्चे अर्थों में धरती से जुड़े व्यक्तित्व बने,समाज समरसता वाला विकसित करें,उल्लेखनीय कार्य करें,सबके हित का सोचें,धरती पुत्र कहला सकें ऐसे हमारे कार्य हों।
कुछ उल्लेखनीय मुहावरे हमें सीख दे रहे हैं,,हम अपनी मिट्टी उठने से पहले कुछ सकारात्मक कार्य करें,मिसाल बने,जीवन अनमोल है
समय का सदुपयाग, स्व ,समाज और राष्ट्र हित करें,मिट्टी के मोल न गवां दें समय और जीवन
मिट्टी के माधव ,नहीं बने,अपने रिश्तों,संबंधों,मित्रता के अर्जन को,मिट्टी में ने मिला दें।
धरती कहती है पुकार के,
जीवन सफल बनाएं इसे संवार के
होगा संभव यह सब कार्य,
ब्रज,हमारे हृदय में, धरती के प्रति प्यार से
- डॉ ब्रजभूषण मिश्र, भोपाल
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